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आरजेडी 8 विधायकों का बंदोबस्त कर लें तो तेजस्वी सीएम बन जाएंगे ?

बिहार की सियासत में अचानक आई गर्मी खरमास बाद भी बनी रहने की उम्मीद है। इंडी अलायंस के घटक दल जेडीयू में खींचतान शुरू है। तेजस्वी के पास अभी 115 विधायकों का समर्थन है। सरकार बनाने के लिए 243 सीटों वाली विधानसभा में 123 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। यानी आरजेडी 8 विधायकों का बंदोबस्त कर लें तो तेजस्वी सीएम बन जाएंगे। पर, क्या यह उतना आसान होगा ?

बीजेपी भी साल 2020 के विधानसभा चुनाव में मिलीं 74 सीटों के साथ आरजेडी के समकक्ष खड़ी है

बिहार की राजनीतिक पार्टियों में संख्या बल की दृष्टि से अभी सबसे अधिक ताकतवर आरजेडी दिख रहा है। भाजपा की ताकत भी कम नहीं। बीजेपी भी साल 2020 के विधानसभा चुनाव में मिलीं 74 सीटों के साथ आरजेडी के समकक्ष खड़ी है। बीजेपी में न कोई नाराजगी दिखती है और न टूट-फूट की गुंजाइश। बीजेपी के सहयोगी भी लोकसभा सीटों के लिए कोई हड़बोंग नहीं मचा रहे। बीजेपी की तरह ही आरजेडी में शांति है।

जेडीयू साथ रहे तो कोई दिक्कत नहीं, साथ छोड़े भी तो सरकार महागठबंधन की रहेगी, महागठबंधन के नेताओं को भरोसा

दरअसल, आरजेडी की निश्चितता के दूसरे कारण हैं। अव्वल तो आरजेडी में भगदड़ की कोई आशंका नहीं है। दूसरे, आरजेडी को पूरा विश्वास है कि उसका दल सहयोगी जेडीयू लाख छटपटाए, पर उसकी सेहत पर उसका कोई असर पड़ने वाला नहीं। जेडीयू साथ रहे या जाए, आरजेडी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हां, साथ रहने पर थोड़ी आसानी तो आरजेडी को होगी ही। आरजेडी ने दोनों तरह की तैयारी कर रखी है। जेडीयू साथ रहे तो कोई दिक्कत नहीं, साथ छोड़े भी तो सरकार महागठबंधन की बनी रहेगी, ऐसा आरजेडी के आला नेताओं को भरोसा है।

जेडीयू में एक खेमा ऐसा भी है, जो महागठबंधन के साथ रहने का पक्षधर है

क्या है आरजेडी के इतना निश्चिंत रहने की वजह बिहार के सियासी हलके में इस बात की जोरदार चर्चा है कि नीतीश कुमार की पार्टी में विद्रोह के बीज पड़ चुके हैं। अगर जेडीयू का यही रंग-ढंग रहा तो उसके नेता खुद टूट जाएंगे। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि, जेडीयू के ज्यादातर सांसद-विधायक बीजेपी के साथ के आदी रहे हैं। वे जितना कंफर्ट बीजेपी के साथ महसूस करते रहे हैं, उतना आरजेडी के साथ रहकर नहीं। जेडीयू में एक खेमा ऐसा भी है, जो महागठबंधन के साथ रहने का पक्षधर है। जेडीयू में ललन सिंह प्रकरण पर छिड़ी चर्चा के बीच जेडीयू के दर्जन भर विधायकों का पटना में एक जगह जमा होकर गुफ्तगू करना जेडीयू में सब कुछ ठीक न रहने के शुरुआती संकेत हैं।

नीतीश कुमार आरजेडी के साथ दो कारणों से गए थे

बीजेपी को छोड़ कर नीतीश कुमार आरजेडी के साथ दो कारणों से गए थे। पहला यह कि, वे बीजेपी का दबाव अपने उपर महसूस कर रहे थे। दूसरा, नीतीश को महागठबंधन में सामाजिक ताकतों का जमघट दिख रहा था। आरजेडी ने खुले मन से महागठबंधन में नीतीश को अगर स्वीकार किया तो इसके पीछे उसकी मंशा शायद यही रही हो कि इसी बहाने वह नीतीश-भाजपा की पुरानी दोस्ती तोड़ देगा और देर-सबेर नीतीश से सीएम की कुर्सी झटक लेगा।

नीतीश कुमार का मन डोलने की खबर आरजेडी कैंप को लगी है

सीएम की कुर्सी आसानी से नीतीश छोड़ने को तैयार नहीं हैं तो आरजेडी ने नया दांव अख्तियार किया। उसने जेडीयू के वैसे विधायकों की पहचान कर ली, जो आड़े वक्त उसके काम आएं। जब से नीतीश कुमार का मन डोलने की खबर आरजेडी कैंप को लगी है, तभी से उसने वैकल्पिक योजना पर काम शुरू कर दिया है। यानी नीतीश ने फिर एनडीए का दामन थामा तो उनके विधायकों को कैसे तोड़ लिया जाए।

जेडीयू नेता बार-बार सफाई दे रहे कि बीजेपी के इशारे पर मीडिया अनाप-शनाप खबरें चला रहा है

पटना में अगर जेडीयू के दर्जन भर विधायक चोरी-चुपके कहीं जुटते हैं और कुछ चर्चा करते हैं तो इसके पीछे आरजेडी की ही चाल है। आरजेडी का एक ही लक्ष्य है कि उसके नेता बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव किसी तरह सीएम बन जाएं। यह तभी हो सकता है, जब स्वेच्छा से नीतीश सीएम की कुर्सी छोड़ दें या महागठबंधन से अलग होने का फैसला करें। नीतीश कुमार बार-बार सफाई दे रहे कि बीजेपी के इशारे पर मीडिया जेडीयू के बारे में अनाप-शनाप खबरें चला रहा है। जेडीयू में कहीं कोई गड़बड़ नहीं है।

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नीतीश कुमार फिर पलटी मारेंगे और एनडीए के साथ जाएंगे?

लेकिन जानकार बताते हैं कि खरमास बीतते बिहार की राजनीति नया करवट लेने को बेताब है। इसका स्वरूप भी लोग यह कहकर बताते हैं कि नीतीश फिर पलटी मारेंगे और एनडीए के साथ जाएंगे। जेडीयू के पुराने नेता नरेंद्र सिंह भी यही कहते हैं। जेडीयू से अलग होने के बाद चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज यात्रा कर रहे प्रशांत किशोर का भी यही मानना है। तेजस्वी के पास अभी 115 विधायकों का समर्थन है। सरकार बनाने के लिए 243 सीटों वाली विधानसभा में 123 विधायकों के समर्थन की जरूरत है।

आरजेडी को दल-बदल कानून की परवाह नहीं, क्योंकि विधानसभा के अध्यक्ष उसके ही दल के हैं

यानी आरजेडी 8 विधायकों का बंदोबस्त कर ले तो तेजस्वी सीएम बन जाएंगे। आरजेडी की रणनीति है कि अगर जेडीयू ने एनडीए के साथ जाने का फैसला किया तो उसके 8-10 विधायकों को अपने पाले में करना आसान होगा। आरजेडी की नजर जेडीयू के उन विधायकों पर है, जो आसानी से उसके साथ आ सकते हैं। आरजेडी को दल-बदल कानून की भी परवाह नहीं, क्योंकि विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी उसके ही दल के हैं। दल-बदल का मामला आया भी तो वे 2025 के चुनाव तक मामले को लटका सकते हैं।

बीजेपी को आरजेडी की चिंता नहीं क्योंकि राज्यपाल तो बीजेपी सरकार द्वारा ही नियुक्त हैं

भाजपा की अपनी तैयारी है। पहली तैयारी तो यह दिखती है कि नीतीश कुमार को किसी तरह साथ लाया जाए। अगर यह काम निर्विघ्न संपन्न हो गया तो बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन जाएगी। अगर इसमें व्यवधान हुआ, जैसा कि जेडीयू के कुछ विधायकों के आरजेडी के प्रति आकर्षण की बात कही जा रही है तो इसकी भी चिंता बीजेपी को नहीं है। इसलिए कि राज्यपाल तो बीजेपी सरकार द्वारा ही नियुक्त है।

बीजेपी की योजना यह भी है कि नीतीश खुद सरकार गिरा दें और विधानसभा का चुनाव बीजेपी और जेडीयू मिल कर लड़ें

तेजस्वी के दावा पेश करने की स्थिति में वे रोड़े अंटका सकते हैं। वे दल-बदल का मामला लटकने की बात कहकर सरकार बनने से रोक सकते हैं। तब राज्य में कुछ समय के लिए गवर्नर रूल भी हो सकता है। बीजेपी की योजना यह भी है कि नीतीश खुद सरकार गिरा दें और विधानसभा भंग हो जाए। फिर लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव बीजेपी और जेडीयू मिल कर लड़ें।

नीतीश कुमार को बीजेपी की चाल भी समझ में आ रही है और आरजेडी की कुटिलता से भी वे अनजान नहीं

नीतीश कुमार ऐसे दोराहे पर खड़े हैं, जो शायद उनके राजनीतिक करियर में पहली बार सबसे चुनौतीपूर्ण बनकर सामने आया है। नीतीश को बीजेपी की चाल भी समझ में आ रही है और आरजेडी की कुटिलता से भी वे अनजान नहीं होंगे। हालांकि, उम्मीद यही है कि आखिरकार भाजपा की शर्तों पर नीतीश कुमार को उसके साथ आना ही पड़ेगा। भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू है। जेडीयू को तोड़ कर तेजस्वी ने दावा पेश किया तो राजभवन रोड़े अंटकाएगा। दल-बदल में अवध बिहारी चौधरी मदद करें भी तो राजभवन अड़ंगा डालेगा।

कुर्सी सुरक्षित रखने हेतु नीतीश कुमार किसी हद तक जा सकते हैं या राज्यपाल राजनीतिक अस्थिरता का सहारा ले सकते हैं

राज्यपाल राजनीतिक अस्थिरता का सहारा लेकर गवर्नर रूल की सिफारिश कर सकते हैं। रही बात आरजेडी से निपटने की तो तेजस्वी के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों ने पहले से ही मोर्चा खोल रखा है। यानी नीतीश कुमार के पास आज नहीं तो कल, बीजेपी के साथ जाने की मजबूरी होगी। कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए नीतीश कुमार किसी हद तक जा सकते हैं, बीजेपी को यह भी पता है। खैर, खरमास तक बिहार की सियासत में गर्मी बरकरार रहेगी और उसके बाद राजनीति का नया रूप बिहार में देखने को मिलेगा।