हेमंत सोरेन को नेता के तौर पर झारखंडियों ने स्वीकार कर लिया हैं। अगर चंपाई सोरेन भाजपा में जाते हैं तो उनका राजनीतिक हश्र बदतर हो सकता है
झारखंड विधानसभा चुनाव के मुंहाने पर राजनीतिक गलियारे में एक बड़ी कयास लगाई जा रही है कि – चंपाई सोरेन झामुमो छोड़ भाजपा में जाने वाले हैं । अगर ऐसा हुआ तो समझिए चंपाई सोरेन अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे?
हां ! इससे भाजपा को चुनाव में नऐरएटइव बनाने का मौका जरूर मिल जाएगा। ताज़ा उदाहरण गीता कोड़ा और सीता सोरेन का है। गीता कोड़ा झामुमो के साथ गठबंधन में थी और सीता सोरेन झामुमो में। हेमलाल मुर्मू भी झामुमो छोड़ भाजपा में गये थे। लगातार तीन चुनाव हारे। अब वापस झामुमो में हैं।
शैलेन्द्र महतो झामुमो के महासचिव थे। इनके हस्ताक्षर से पार्टी टिकट बांटती थी। भाजपा में गये। आज उनकी राजनीतिक स्थिति सब जानते हैं। चक्रधरपुर विधायक सुखराम उरांव भी भाजपा में गये थे। झामुमो में लौटे तो विधायक बने। साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी ने भी पार्टी छोड़ी थी। भाजपा में नहीं गये। लेकिन राजनीतिक हताशा से वापस झामुमो में आ गये।
एकमात्र अर्जुन मुंडा भी झामुमो छोड़ भाजपा में गये और भाजपा से मुख्यमंत्री बने। लेकिन तब अर्जुन मुंडा झामुमो के बड़े नेता नहीं थे। शैलेंन्द्र महतो के साथ भाजपा में गये थे। कृष्णा मार्डी, सूर्य सिंह बेसरा ऐसे कई नाम मिलेंगे जिन्होंने झामुमो छोड़ी और राजनीतिक हाशिए पर चले गये।
कुछ समय के लिए बिनोद बिहारी महतो भी झामुमो से अलग हुए थे। अपना अलग गुट बनाये थे। कुड़मियों का गुट। सफल नहीं हुए। वापस झामुमो में आ गये। उनके पुत्र भी भाजपा में गये थे। चल नहीं पाये।
चंपाई सोरेन का भाजपा में जाने का कयास यदि सही होता है तो समझिए यह अपने पांवों में कुल्हाड़ी मारने जैसी बात होगी
दरअसल झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड आन्दोलन से उपजी पार्टी है। तमाम खामियों और राजनीतिक दांव पेंच में विफलता के बावजूद झारखंडियों को वह अपनी पार्टी या कहें झारखंड की माटी की पार्टी लगती है। झारखंडियों को नेता नहीं पार्टी जोड़ती है। और पार्टी मतलब झामुमो।
हम बात चंपाई सोरेन की कर रहे थे। चंपाई बाबू झारखंड आन्दोलन के नेता हैं। उस आन्दोलन के जिसके अगुवा शिबू सोरेन रहे। और आज हेमंत सोरेन को पार्टी के नेता के तौर पर झारखंडियों ने स्वीकार कर चुके हैं। इसलिए चंपाई सोरेन अगर … अगर झामुमो से भाजपा में जाते हैं तो समझ सकते हैं उनका राजनीतिक हश्र क्या होने वाला है?
वैसे भी चंपाई सोरेन प्रायः चुनावों काफी कम मार्जिन से जीतते रहे। गत लोक सभा चुनाव में भी चंपाई बाबू के विधान सभा क्षेत्र में झामुमो लगभग 17 हजार वोटों से पीछे रही। किसी अन्य सीट पर वैसा उनका असर भी नहीं है कि वे वहां झामुमो को हरा सकें।
दूसरी बात, भाजपा चंपाई सोरेन को विधानसभा का टिकट भले दे दे। हो सकता है उनके एक बेटे को भी टिकट दे दे, लेकिन भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से तो रही। वैसे ही भाजपा में लंबी कतार है। झामुमो ही है कि वे पांच महीने के लिए ही सही मुख्यमंत्री बने। हो सकता है चंपाई सोरेन भाजपा से इस बार चुनाव जीत जाएं, लेकिन अगली बार उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
वैसे भी चंपाई सोरेन के भाजपा में जाने से रमेश हांसदा जैसे झामुमो के पुराने नेता झामुमो में वापस आ सकते हैं। जो चंपाई सोरेन की वजह से भाजपा में चले गये थे। कुल मिलाकर, चंपाई सोरेन का भाजपा में जाने का कयास यदि सही होता है तो समझिए यह अपने पांवों में कुल्हाड़ी मारने जैसी बात होगी।