राजद सुप्रीमों श्री लालू प्रसाद जी के 76 वें जन्म दिन पर हार्दिक बधाई!
नायक को बनाया गया खलनायक
हरेक कालखंड की तरह ‘लालू युग’ की अपनी विशिष्टाएं थी, अपने मुद्दे थे, अपने मानक थे, अपना अतिवाद था, अपनी वर्जनाएं, अपनी संभावनाएं, अपनी सीमाएं थी, अपनी नायाब शैली थी। …और उतना ही नायाब ‘नायकत्व’ भी था। जाहिर है कि कालखंड के बदलने के साथ ‘मुद्दे’ और ‘नायक’ भी बदल जाते हैं, इतिहास में ऐसा ही होता है।
लालू प्रसाद होने का मतलब
लालू प्रसाद की छवि सामाजिक नायक के ‘मसीहा’ के रूप में रही है। यह उनके व्यक्तित्व से इस तरह चस्पा है कि वह जीते-जी इससे उबर नहीं सकते। नीतीश कुमार को 2005 में जिन राजनीतिक एजेंडों पर रिकार्ड जनादेश मिला था, उसके लिए जमीन ‘लालू-युग’ ने ही मुहैया करायी थी। लालू प्रसाद ने जो अकूत सोशल और ह्यूमन कैपिटल तैयार किया था, उसका ही एक बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार के नए सामाजिक समीकरण का गतिशील तत्व ‘सामाजिक समरसता’ था, जो धीरे-धीरे परवान चढ़ गया।
जितना मैंने लालू प्रसाद जी को समझा है
जहां तक मैंने लालू प्रसाद जी को देखा और समझा है, उससे मैं यह मानने को तैयार नहीं कि ‘लालू प्रसाद जी रफ़ बोलते हैं और किसी की कद्र नहीं करते।’ मैंने मीडिया के माध्यम से और सार्वजनिक जगहों पर उनके बारे में कई तरह की बाते पढ़ी-सुनी है। यहां तक कि मेरे करीब रहनेवाले कुछ लोग भी इस तरह की बातें नमक-मिर्च लगाकर बताया करते थे। लेकिन हकीकत में मैंने इन बातों को झूठा पाया। मैंने लालू जी का रवैया नरम और शालीन देखा है। उनके बारे में एक साजिश के तहत ‘अफवाह’ उड़ाकर उनका ‘चरित्र हनन’ किया गया है। जबकि, सच्चाई इससे विपरीत है। मैं स्वयं इससे रूबरू हूँ।
पहला उदाहरण 2009 का है। मैं लालू जी के पास सुबह में मौजूद था। संयोग से उस दिन ईद था। बात के क्रम में मैंने बताया कि- ”जगदीशपुर (भोजपुर) का प्रखंड प्रमुख मो. मुस्लिम मेरे परिचित हैं और आपके साथ जुड़ना चाहते हैं।” इस पर तत्काल लालू जी ने मेरे फोन से मो. मुस्लिम से बात की और उन्हें ‘ईद की मुबारकबाद’ दी।
दूसरी घटना में उन्हीं मो. मुस्लिम को राजद की सदस्यता लेनी थी। उनके साथ एक दर्जन सहयोगियों के साथ पूर्व मंत्री हरिनारायण सिंह यादव भी आये थे। पटना से हमारे साथ युवा राजद के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद बड़े भाई आलोक कुमार मेहता जी थे। लालू प्रसाद जी से परिचय कराने के क्रम में मेहता जी ने मेरा भी परिचय दिया। इस पर लालू जी बोले कि- ‘’इनका परिचय देने की ज़रूरत नहीं, इनसे मैं पूर्व परिचित हूं। ये बड़े सक्रिय हैं।’’
तीसरी घटना विधान सभा और विधान परिषद् में ‘एसीडीसी बिल’ पर हंगामा के दूसरे दिन की है। मुझे लालू जी से मिलना था। उस दिन लालू जी तनाव में थे। वे किसी से नहीं मिल रहे थे। पार्टी के कई बड़े नेताओं को बिना मिले वापस लौटना पड़ा था। मैंने सहमते हुए अपने आने की खबर भीतर भिजवाईं। मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन लालू जी उस माहौल में भी मुझसे मिले।
चौथी घटना में मैं एक शाम लालू जी के आवास पर मिला। लालू जी के दिशा-निर्देशन में राजद के एक टास्क-टेस्ट में, मैं बड़े भाई आलोक कुमार मेहता जी के साथ काम पर लगा था। राजद सुप्रीमों से उसी संदर्भ में कुछ बात करनी थी। उस शाम लालू जी से कुछ दूरी पर राजद के एक वरीय पदाधिकारी और लालू जी के ख़ास (अब दूसरे दल की शोभा बढ़ा रहे हैं) भी बैठे थे। लालू जी ने उनसे बात करने के लिए मुझे कहा। पर उन महाशय की तरफ से कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं मिलते देख, थोड़ी दूरी बैठे लालू प्रसाद जी ने मुझे अपने पास बुला लिया और बोले- ‘‘कुछो ना न बोललन? हम सबके नीयत समझत बानी।’’ हालांकि, जो टास्क हमें मिला था, टेस्ट में वह सफल रहा। उसका सकारात्मक परिणाम आया था।
पांचवी घटना उस समय की है, जब लालू प्रसाद जी मोतिहारी से केन्द्रीय विश्वविद्यालय के लिए यात्रा संपन्न कर अपने आवास पर थे। उस दिन वहां पर सर्वश्री अब्दुलबारी सिद्दिकी जी, रघुनाथ झा जी, एम. ए. फातमी साहब आदि मौजूद थे। मेरे अभिवादन के बाद लालू जी बोले- ‘’का हो मंजुल, का होत बा।’’ मैंने कहा कि- ‘’सर अभी एगो मैगजीन के शुरूआत कइले बानी।’’ और मैंने अपने सहायक के हाथ से ‘बेमिसाल मिसाल’ मैगजीन की कुछ प्रतियां लालू जी के हाथ में सौंप दिया।
सभी मैगजीनों को पलटकर देखने के बाद लालू प्रसाद जी बोले कि-‘’अच्छा काम शुरू कइले बाड़..! अभी सिद्दिकी साहब, झा जी सब लोग के पढ़े के द..। रात में हमहूं पढ़ब..।’’ दरअसल, हमसे लालू प्रसाद जी भोजपुरी में ही बात करते हैं। ऐसे कई उदाहरण के द्वारा मैंने महसूस किया है कि लालू प्रसाद जी गरीबों के ‘औघड़ मसीहा’ और जिंदादिल इंसान हैं। विरोधियों के द्वारा जहां जान-बूझकर उन्हें बदनाम किया गया है, वही उनको सत्ताच्युत करवाने में उनके कुछ ‘कथित अपनों’ की भी खास भूमिका रही है।
लालू जी को गाली देना आसान है लेकिन लालू जी जैसा बनना सबके बस की बात नहीं
फर्क इतना सा है कि Lalu Prasad Yadav जी ने अपने कोटे से स्वर्गीय रामविलास पासवान जी को राज्यसभा सांसद बनाकर उनका बंगला बचाने का काम किया था। जबकि, नीतीश जी ने उनके जाने के 6 महीने में ही उनके बंगले में आग लगा दिया, उनका घर बर्बाद कर दिया। इसलिए कहते हैं लालू एक विचार है, दलितों वंचितों का समाधान है, लालू प्रसाद यादव जी जैसा सदियों में कोई एक लालू पैदा होता है।
गैर-भाजपाइयों में एक अकेले लालू प्रसाद ही ऐसे शख्स हैं जो हर परिस्थिति में धर्मनिरपेक्षता का झंडाबदार रहे। 2010 के बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा किनारा कर लेने तथा 2012-13 में कांग्रेस और जदयू की बढ़ती नजदीकियों के बावजूद लालू प्रसाद कांग्रेस सहित धर्मनिरपेक्ष ताकतों का समर्थन करते रहे।
17 अक्टूबर 2013 को गांधी मैदान के मंच से नरेन्द्र मोदी ने द्वारिका और श्रीकृष्ण का हवाला देते हुए यदुवंशियों सहित लालू प्रसाद को अपने साथ आने का न्यौता दिया था। तब लालू प्रसाद रांची के होटवार कारागार में थे। लालू प्रसाद ने मोदी के इस न्यौते को धर्मनिरपेक्षता के लिए खारिज कर दिया था। वे चाहते तो नीतीश कुमार और राम विलास पासवान से अधिक नरेन्द्र मोदी के प्रिय और करीब होते।
जब लालू प्रसाद जी रांची के होटवार कारागार में थे, तब राहुल गांधी पर भाजपा द्वारा ताबड़तोड़ मौखिक हमले हो रहे थे, तब राहुल गांधी अकेले पड़ते नजर आ रहे थे। ऐसे समय में लालू प्रसाद ने पहले जेल से तथा जेल से बाहर आकर राहुल बाबा के पक्ष में हुंकार भरी थी। इसके बावजूद, 2014 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस का राजद से गठबंधन होते हुए भी राहुल गांधी लालू प्रसाद के साथ चुनावी मंच साझा करने से परहेज करते दिखे हैं।
यह भी गौरतलब है कि लोक सभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की अपार सफलता के बाद उन्हें बधाई देनेवालों में मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी सहित पक्ष-विपक्ष के तमाम नेता थे, लेकिन लालू प्रसाद एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने मोदी को सांप्रदायिक शक्तियों का नेता मानकर बधाई देने से मना कर दिया था। यही कारण है कि आज लालू प्रसाद कांग्रेस और जदयू से अलग तथा बड़े दिखने लगे हैं।
2015 में तत्कालीन रालोसपा नेता सांसद अरूण कुमार द्वारा अनंत सिंह-प्रकरण में मुख्यमंत्री पर हमला करने वाले बयान के विरोध में सबसे पहले लालू प्रसाद ने ही हुंकार भरी थी- ‘‘अकेले नहीं हैं, नीतीश। उनके साथ मैं पूरी सख्ती से खड़ा हूँ। …अमर्यादित भाषा का प्रयोग बंद करें। ऐसा कोई काम नहीं करें, जिससे राज्य में उन्माद फैले। सोए हुए लोगों को जगाने का काम न करें। सोए हुए लोग जाग जाएंगे तो अंजाम बुरा होगा।’’ राजद सुप्रीमों के इस बयान के 2 घंटे बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान आया कि-‘‘जिसे जो करना है, कर ले। मैं यहीं मौजूद हूँ।’’
‘मैनेजमेंट गुरू’ को ‘ललुआ’ और उनके कार्यकाल को ‘जंगलराज’ से नवाजा गया
लालू प्रसाद ने देश में सबसे अधिक ताकत के साथ कम्युनल ताकतों के फन को कुचला। लालू जी ने जहां ‘मण्डल’ को मजबूत बनाया, वहीं ‘कमण्डल’ को फोड़ डाला। अश्वमेध का रथ लेकर निकले आडवाणी जी को बिहार की धरती पर रोककर, लालू प्रसाद ने सिद्ध कर दिया कि वे खुद को अपराजेय समझने वाले हिंदुत्ववादियों की नकेल कसने में समर्थ हैं। लालू प्रसाद ने जिस ताकत के साथ धर्मनिरपेक्षता व भारतीय संविधान के साथ खड़े होने का कार्य किया, वह अद्वितीय है। लालू प्रसाद का यह कार्य साजिश के तहत ‘जंगल राज’ के रूप में शुमार किया जाने लगा।
रेलवे की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए तेजी से कुछ करने की आवश्यकता थी। राकेश मोहन जैसे विशेषज्ञ ने चार चरणों वाला समाधान बताया था। 1. यात्री किराए में वृद्धि 2. कर्मचारियों की छंटनी 3. निगमीकरण और 4. नियमन। तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव जी इन सभी सुझावों को दरकिनार कर अपने आंतरिक संसाधनों में सुधार कर रेलवे की काया पलट दी। घाटे में चल रही रेल अचानक से मुनाफा देने लगी। जिस रेलवे को एक डूबता हुआ जहाज़ माना जा रहा था, उसने 2008 में 90000 करोड़ के अपने सालाना उधार से 6 गुणा नकदी पैदा की। इसके कारण ‘जोकर लालू’ से ‘प्रोफेसर लालू’ बन गए।
लालू प्रसाद ने रेल मंत्री रहते हुए जिस तरीके से बिना किराया बढ़ाये, घाटे में जा रही रेल को मुनाफे में लाया, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में लालू प्रसाद ‘मैनेजमेंट गुरू’ के रूप में ख्याति पाए। उन्हें दुनिया की नामचीन यूनिवर्सिटीज ने व्याख्यान हेतु बुलाया। लालू प्रसाद ने अपनी क्षमता व मेधा का लोहा दुनिया को मनवाया, लेकिन इसके बावजूद लालू प्रसाद को ‘ललुआ’ कहा गया और उनके राज को ‘गुंडाराज।’
रेल मंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव की कुछ उपलब्धियां
लालू प्रसाद यादव ने रेलवे के लिये जितना विकास कार्य किया है, उतना आज तक किसी भी रेलमंत्री ने नहीं किया। सदी के महानतम रेलमंत्री के कार्य को आज भी रेलवे के लोग याद करते हैं।
- छपरा में 872 करोड़ की लागत से रेल पहिया कारख़ाना लगवाया।
- 2025 करोड़ की लागत से सारण के मढौरा में डीजल इंजन कारख़ाना लगवाया।
- मधेपुरा में 1300 करोड़ की लागत से विद्युत रेल इंजन कारख़ाना लगवाया।
- 90 करोड़ की लागत से सोनपुर में माल वैगन मरम्मत वर्कशॉप और 15 करोड़ की लागत से दी ईएमयू डिपो लगवाया।
- समस्तीपुर में 33 करोड़ की लागत से वैगन रिपेयर वर्कशॉप लगवाया।
- 15 करोड़ की लागत से मधेपुरा, सीतामढ़ी और चकसिकंदर में कंक्रीट स्लीपर फैक्ट्री लगवाया।
- सारण के गरखा में 40 करोड़ की लागत से वैगन पुनर्निर्माण वर्कशॉप लगवाया।
- 5500 करोड़ की लागत से 1000 मेगावाट बिजली उत्पादन परियोजना लगवाया।
- 1240 करोड़ की लागत से नयी रेल लाइन निर्माण अमान परिवर्तन दोहरीकरण सह विद्युतीकरण करवाया।
- गरीब रथ पूर्णत : वातानुकूलित रेलगाड़ी चलवाया ताकि गरीब-गुरबा AC में सफर कर सके।
- पहले रेलमंत्री जिन्होने लगातार हर बजट में यात्री किराया कम किया।
- कुली भाई को स्थायी रेलवे नौकरी दिया।
- जब बिहार में कोसी तटबंध टूटा था तो बिहार को 900 करोड़ रुपया बाढ़ पीड़ितो के लिए बिहार सरकार को दिया।
- साक्षात्कार के लिए जाने वाले युवाओं का रेल किराया मुफ्त किया।
- इन्टरनेट से रेल टिकट बुकिंग प्रारम्भ करवाया।
- समस्तीपुर,मुजफ्फरपुर वालों को राजधानी ट्रेन की सुविधा और पटना राजधानी प्रतिदिन करवाया।
- पटना में सबसे बड़ा रेलवे अस्पताल का निर्माण जो कि पटना रेलवे स्टेशन के बगल में है।
- रेलवे बजट के अंतर्गत पटना से छपरा तक गंगा नदी पर रेलवे व सड़क पुल बनवाने का कार्य कियायह पुल अब चालू है।
- गरीब कुम्हार भाइयों को रोजगार देने हेतु कुल्हड़ का प्रयोग अनिवार्य किया।
- गरीबों और अकल्तियों के गाँवों में लोकल गाड़ियों को रुकने के निर्देश दिये।
लालू प्रसाद के रेल मंत्रित्व काल में ग्रामीण-कस्बाई छात्रों को बड़ी संख्या में रोजगार मिला
लालू प्रसाद ने जब रेलवे को 90000 करोड़ रुपये का मुनाफा दिया तो पूरी दुनिया में डंका बज गया। लालू प्रसाद ने यह मुनाफा रेलवे के किसी भी सेक्टर को बिना निजीकरण करते हुए दिया। साथ ही, सामाजिक न्याय का भी पूरा ख्याल रखा जैसे कि कुली भाइयों को गैंगमैन वाला पोस्ट देना या फिर कुल्हड़ वाली चाय और नीम की दतुवन का चलन शुरू करवाना। इससे कुम्हार समाज सहित देहाती बेरोजग़ारों को रोजगार मिला। साथ ही, रेलवे में वैकेंसी की बाढ़ ला दी, जिससे ग्रामीण-कस्बाई छात्रों को बड़ी संख्या में रोजगार मिला।
पूरी दुनिया लालू जी की प्रबंधन-क्षमता की कायल हो गई और विदेशों के हॉवर्ड यूनिवर्सिटी जैसे टॉप के शिक्षण-संस्थानों ने लालू जी को अपने छात्रों को मैनेजमेंट के गुर सिखाने के लिए बुलाया …और लालू जी को मैनेजमेंट गुरु की उपाधि दी। (इस फ़ोटो को देखिए और उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाइये)
लेकिन भारत की मीडिया और उच्च तबका उन्हें आज भी ‘चारा चोर’ कहकर संबोधित करता है। दरअसल, इसमें गलती हमारी ही है। हम इस मुद्दे पर डिफेंसिव हो जाते हैं और अच्छे तर्क न देकर उनके ही पाले में खेलने लगते हैं। हम भी भूल जाते हैं कि- लालू प्रसाद जी देश के सबसे सफल रेलमंत्री थे …और पूरी दुनिया उन्हें ‘मैनेजमेंट’ गुरु के नाम से जानती है।
लालू प्रसाद को फंसाया गया है?
लालू प्रसाद पर जिस ‘चारा घोटाले’ का केस है, उसमें यथार्थ तो यही है कि लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही उसका खुलासा हुआ। लालू प्रसाद ने ही चारा घोटाले का मुकदमा दर्ज करवाया। यह घोटाला तो लालू प्रसाद के सत्तासीन होने के दशकों पूर्व से चला आ रहा था, लेकिन इसे लालू प्रसाद ने ही पकड़ा और एफआईआर कराया। कई पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व मंत्री इस घोटाले पर आंख मुदें रहे, लेकिन लालू प्रसाद ने इस घोटाले को उजागर किया। फिर भी एक खास वर्ग की नजर में लालू प्रसाद ‘चारा चोर’ हो गए और जगन्नाथ मिश्रा जी प्रातः स्मरणीय बने रहे।
कितना अजीब है कि जिस व्यक्ति ने ‘चारा घोटाला’ उजागर किया, वह जेल की सींखचों में और जिनके कार्यकाल में यह घोटाला फला-फूला उसे इस समाज के सौतेले सोच ने इज्जत बख्सा। न्यायपालिका का हम सम्मान करते हैं। …और हम सबको न्यायिक प्रक्रिया पर विश्वास भी करना चाहिए, लेकिन जब किसी जांच ऐजेंसी द्वारा चूक हो तो सवाल भी उठना चाहिए। लोकतंत्र में बातें रखने, तर्क करने, किसी फैसले को न्याय की कसौटी पर कसने की गुंजाइश भी रहनी चाहिए।
लालू प्रसाद से इतनी नफरत क्यों?
न्यायाधीश और डॉक्टर को हम ‘जीवित ईश्वर’ कह सकते हैं जो जीवन लेने व देने की क्षमता रखता है। फिर उसका प्रेशराइज या रिजिड होना बहुत सारे सवाल छोड़ता है। लालू प्रसाद 70 वर्ष की उम्र में यदि तमाम बीमारियों व झंझावातों से जूझते हुये कहते हैं कि- ‘‘हुजूर ठंड बहुत है’’, तो क्या ईश्वर की जीवित मूर्ति को यह कहना चाहिए कि- ‘’तब आप हारमोनियम व तबला बजाइये।’’
राजनीति में यह पैटर्न नहीं बदला है। लालू प्रसाद के मामले में तो सामंतों ने मिथकों के युग के पैटर्न का विस्तार ही किया है। यह आख़िरी बार नहीं है कि लालू प्रसाद को सीबीआई से डराने की कोशिश की गई। दिलचस्प यह है कि चारा घोटाला मामले मेें जिस धारा का इस्तेमाल कर उन्हें दोषी करार दिया गया, उसी धारा को आधार बनाकर एक बार फिर उन्हें रोकने की कोशिश की गयी।
सीबीआई को 1970 के दशक से लेकर 1994 तक के सभी मुख्यमंत्रियों के ऊपर मुकदमा करना चाहिए था
चारा घोटाले के सभी मुकदमों में लालू प्रसाद के ऊपर जो धारा मुख्य रुप से लगायी गयी है वह 120 (बी) है। इस धारा का मतलब यह है कि जिसके उपर यह धारा आरोपित की जाती है, वह किये गये अपराध के बारे मेें जानकारी रखता था। मतलब यह कि लालू प्रसाद के उपर चारा घोटाला में रिश्वत लेने का आरोप नहीं है। सीबीआई के विशेष अदालत ने लालू प्रसाद को रिश्वत लेने के मामले में दोषी करार नहीं दिया, बल्कि धारा 120 (बी) के तहत दोषी कहा है। कायदे से सीबीआई को 1970 के दशक से लेकर 1994 तक के सभी मुख्यमंत्रियों के ऊपर मुकदमा करना चाहिए था, क्योंकि चारा घोटाला 1970 के दशक से ही जारी था और यह बात सीबीआई कोर्ट ने अपने फैसले में भी कहा है।
लालू प्रसाद से पहले भी बिहार, देश का सबसे बीमार, गरीब और अशिक्षित राज्य था। लालू प्रसाद का शासन खत्म होने के लगभग 17 साल बाद भी बिहार सबसे बीमार, गरीब और अशिक्षित राज्य है। बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य में बिहार पिछले 17 साल में पीछे ही गया है। इसलिए यह सवाल गैरवाजिब है कि लालू प्रसाद ने बिहार को यूरोप क्यों नहीं बना दिया। जब हम यह सवाल श्रीकृष्ण सिन्ह, माहामाया प्रसाद सिन्हा, केदार पांडेय, केबी सहाय, बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा, जगन्नाथ मिश्र, नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्रियों और पिछले 17 साल में ज्यादातर समय वित्त मंत्री रहे सुशील मोदी से नहीं पूछते, तो ये सवाल सिर्फ लालू प्रसाद से कैसे पूछा जा सकता है?
खैर, अप्सराओं के जरिए इंसानों को फांसने का प्रयास करने वाले, हारने पर इस तरह का षडयंत्र करें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। एक बार फिर धारा 120 (बी) का इस्तेमाल किया गया। 5 जुलाई को केंद्र सरकार के इशारे पर आईआरसीटीसी के द्वारा दर्ज कराये गये प्राथमिकी के मुताबिक, 2006 में कोचर बंधुओं को दिये गये होटल की लीज के संबंध में लालू प्रसाद को जानकारी थी। चूंकि, आईआरसीटीसी एक स्वायत्त संगठन है और उसने स्वयं हिसाब से होटलों को सुचारू रुप से चलाने के लिए ओपेन टेंडर निकाला था। लिहाजा यदि कोई गड़बड़ी हुई है तो इसकी जवाबदेही आईआरसीटीसी की होनी चाहिए।
चारा घोटाला कांड में लालू प्रसाद यादव कैसे फंसाये गए?
अब सीबीआई की छापेमारी के बाद की राजनीति पर बात करें तो यह साफ है कि लालू प्रसाद को केंद्र सरकार ने चारों तरफ से घेर लिया है। जदयू के एक बड़े नेता (राज्यसभा सांसद) के मन में इस बात से ही लड्डू फूटने लगे थे कि- ‘हृदय रोग के मरीज लालू प्रसाद की मौत भी हो सकती है।’ जाहिर तौर पर यही सोच सभी सामंतियों की भी होगी। वे भी यही सोच रहे होंगे। लालू खत्म, लालू की राजनीति खत्म।
लेकिन जरा ठहरिये, लालू प्रसाद को खत्म करना इतना आसान नहीं है। यकीन नहीं तो लालू प्रसाद का इतिहास और उनके वर्तमान के संघर्ष को ईमानदारी से पढ़िए। लालू तब भी नहीं टूटे थे जब सीबीआई ने उनके घर की जमीन तक खोद डाली थी। लालू तब भी नहीं टूटे जब उन्हें फर्जी तरीके से दोषी साबित कर जेल भेज दिया गया। लालू तब भी नहीं टूटे जब उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। हर बार लालू प्रसाद मजबूत बनकर उभरे। इस बार भी मजबूत बनकर उभर रहे हैं।
लालू प्रसाद के प्रति मीडिया का ‘पूर्वाग्रह’ अपने चरम पर है
हैरान करने वाली बात है- एक व्यक्ति जिसके 14 सालों के शासनकाल में आज के विकास के दिखाऊ मानकों जैसा शो-केस करने के लिए कुछ भी नहीं है- जिसके शासनकाल को ‘जंगल-राज’ के नाम से आज भी नवाजा जाता है। जो सजायाफ्ता है, जिस पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप हैं। जिसके प्रति दशकों से ‘मीडिया का पूर्वाग्रह’ अपने चरम पर है, खुद को रणनीतिकार और सत्ता दिलाने का दम्भ भरने वाली कथित अगड़ी जातियां जिसकी धूर-विरोधी हैं। न्यायपालिका पर भी ‘पूर्वाग्रह’ का आरोप लगा- वो व्यक्ति आज भी कैसे और किसके दम पर टिका हुआ है?
लालू प्रसाद की राजनीति को खिसकते और निष्प्रभावी होते तो देखते हैं, मगर उन्हें टूटते-बिखरते नहीं देखा
कैसे यूपीए की दस साल की सरकार के कार्यकाल में यही व्यक्ति निर्णायक भूमिका निभाता है? बिहार की सत्ता से बाहर रहते व जेल से वापसी के बावजूद मोदी-लहर में भी मुकाबले मेें यही शख्स अकेला कैसे टिकता है? 2014 में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सारे पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए ये अपनी पार्टी की वापसी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कराता है? क्या है इसका करिश्मा, कैसा है इसका जनाधार, कैसे हैं इसके राजनीतिक समीकरण? जिसे समय-समय पर दरकते-खिसकते और निष्प्रभावी होते तो देखते हैं, मगर टूटते और बिखरते नहीं!
लालू प्रसाद की राजनीति व रणनीति ऐसी है की मीडिया की खबरें, फोकस और कैमरे उनके इर्द-गिर्द ही घूमती हैं
कैसी है इसकी राजनीति व रणनीति जिसका काट ढूंढ़ने में ही मीडिया का फोकस, कैमरे और खबरें इर्द-गिर्द ही घूमती हैं? कैसा है इसका क्रेज जो तमाम विरोध व विरोधाभासों के बावजूद पिछड़ी जातियों व अल्पसंख्यकों के बीच इसके मिथ को कायम रखता है? …पिछड़ों के बौद्धिक-सामाजिक-राजनैतिक उत्थान के सन्दर्भ में क्या योगदान है इसका कि पिछड़ों की राजनीति की जब भी बात होती है तो इसके नाम का जिक्र जरूर होता है?
लालू प्रसाद को सिर्फ ‘एक ही ब्रैकेट’ में समेटना लालू प्रसाद के प्रति पूर्वाग्रह है
ये ऐसे सवाल हैं जिन पर बिना किसी पूर्वाग्रह के लालू प्रसाद को सिर्फ ‘एक ही ब्रैकेट’ में समेटना लालू प्रसाद के प्रति पूर्वाग्रह ही है। तटस्थ आकलन के लिए सभी बटखरों (पक्ष-विपक्ष दोनोें के ) को तराजू पर बारी-बारी से रखना होगा। भ्रष्टाचार व परिवारवाद के सन्दर्भ में ही गर बात करनी हो, तो दूसरों के भ्रष्टाचार व परिवारवाद को भी उसी तराजू पर तौलना होगा।
लालू प्रसाद जैसे दमदार, निर्भीक, पिछड़े नेता से भयभीत होकर एक ख़ास वर्ग ने षड्यंत्र रचा
लालू प्रसाद जैसे दमदार, निर्भीक और ईमानदार पिछड़े नेता से भयभीत होकर एक ख़ास वर्ग ने ये षड्यंत्र रचा है। 17 साल तक सीबीआई जांच के बावजूद आय से अधिक संपत्ति के मुकदमे में उसे कुछ हाथ नहीं लगा। अंततः फाइल बंद करनी पड़ी। ‘परसूट ऑफ लॉ एंड आर्डर’ के पेज नम्बर 230, 231 और चेप्टर 26 ‘सीबीआई वर्सिस लालू प्रसाद यादव’ में ए. पी. दुराई ने इसे स्पष्ट कर दिया है।
देश में वंचितों के बीच लोकप्रिय लालू प्रसाद से प्रभुतासम्पन्न लोगों को नफरत-घृणा क्याें?
बहुत बड़ा सवाल खड़ा है कि लालू जी से इतनी नफरत क्यों है? एपी दुराई (पूर्व पुलिस महानिदेशक) जो इसके जांच अधिकारी थे, ने जब अपनी किताब ‘प्रसूइट ऑफ लॉ एण्ड ऑर्डर’ में लिख दिया है कि लालू जी को जबरन मुजरिम बनाने की साजिश हुई है, तो शेष बचता क्या है? इन सब के बाद यक्ष प्रश्न यही है कि पूरे देश में वंचितों के बीच लोकप्रिय लालू प्रसाद से कुछ प्रभुतासम्पन्न लोगों को नफरत, घृणा क्याें है?
लालू प्रसाद 21 सदी के ‘भारतीय नेल्सन मंडेला’ के रूप में इतिहास के पन्नों में अमिट रूप में दर्ज होंगे
लालू सचमुच माटी का लाल हैं। हिन्दू धर्मशास्त्र गवाह है कि जिन-जिन लोगाें ने अतीत में वंचितों को ‘हक सम्पन्न’ बनाने की कोशिश की, जो कोई ‘मनुवाद’ या ‘व्यवस्थाद्रोह’ किया, वह किसी न किसी विधि से ताड़ना का शिकार हुआ। शायद वहीं कार्य परिष्कृत रूप में वंचितों के हित में मजबूती से खड़े लालू प्रसाद के साथ इस आधुनिक समय में हो रहा है। अब लालू प्रसाद भले जेल में रहे या बाहर, पर इतना तो निश्चित है कि लालू 21 सदी के ‘भारतीय नेल्सन मंडेला’ के रूप में इतिहास के पन्नों में अमिट रूप में दर्ज होंगे!
मंजुल कुमार सिंह