कल से लागू हो जायेंगे, न्याय व्यवस्था पर क्या होगा असर ?
FIR के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट दाखिल करनी होगी. चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे. इसके साथ ही मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर जजमेंट देना होगा. जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी.
पहली जुलाई यानी आज से काफी कुछ बदलने जा रहा है. खासकर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में. आज से 1860 में बनी आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बनी सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम ले लेगी. इन तीनों नए कानूनों के लागू होने के बाद कई सारे नियम-कायदे बदल जाएंगे. इनमें कई नई दफा यानी धाराएं शामिल की गई हैं तो कुछ धाराओ में बदलाव हुआ है, कुछ हटाई गई हैं. नए कानून लागू होने पर आम आदमी, पुलिस, वकील और अदालतों के कामकाज में काफी बदलाव होगा.
इन कानूनों से क्या बदलेगा
- नए कानूनों का असर 1 जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों, ट्रायल और तहकीकात पर नहीं होगा.
- 1 जुलाई के बाद होने वाले अपराध नए कानून के तहत दर्ज किए जाएंगे.
- वकीलों को नए सिरे से सब कुछ पढ़ना होगा. लेकिन जब नया कानून लागू होगा तो नए केस पर ही लागू होगा. पुराने मामले पुराने कानून के तहत ही चलेंगे.
- कई केस में लगने वाली धाराओं का क्रम बदल गया है . इसलिए नया क्रम याद रखना होगा. – पुलिस, वकील और जजों को दोनों कानूनों यानी
और पुराने कानून को याद रखना होगा. - लॉ स्टूडेंड को दोनों कानून का पाठ पढ़ना होगा तभी वे अदालत के दलील दे पाएंगे.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में शामिल अहम बदलाव
CrPC में जहां कुल 484 धाराएं थीं वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में 531 धाराएं हैं. इसमें ऑडियो-विडियो यानी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जुटाए जाने वाले सबूतों को प्रमुखता दी गई है. वहीं, नए कानून में किसी भी अपराध के लिए जेल में अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉण्ड पर रिहा करने का प्रावधान है. कोई भी नागरिक अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो FIR दर्ज करा सकेगा. FIR होने के 15 दिनों के भीतर उसे ओरिजिनल जूरिडिक्शन यानी जहां का मामला है वहां भेजना होगा. पुलिस ऑफिसर या सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए 120 दिन में संबंधित अथॉरिटी से इजाजत मिलेगी. अगर नहीं मिली तो उसे ही सेंक्शन मान लिया जाएगा.
FIR के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट
FIR के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट दाखिल करनी होगी. चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे. इसके साथ ही मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर जजमेंट देना होगा. जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी. पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा. ऑफलाइन, ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी. 7 साल या उससे ज्यादा सजा वाले मामले में विक्टिम को सुने बिना वापस नहीं किया जाएगा.थाने में कोई महिला सिपाही भी है तो उसके सामने पीड़िता के बयान दर्ज कर पुलिस को कानूनी कार्रवाई शुरू करनी होगी.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में क्या हुए जरूरी बदलाव
भारतीय साक्ष्य अधिनियम ( BSA) में कुल 170 धाराएं हैं. अब तक इंडियन एविडेंस ऐक्ट में कुल 167 धाराएं थीं. नए कानून में 6 धाराओं को निरस्त किया गया है. इसमें 2 नई धाराएं और 6 उप-धाराओं को जोड़ा गया है. गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है. तमाम इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह ही कोर्ट में मान्य होंगे. इसमें ईमेल, सर्वर लॉग, स्मार्टफोन और वॉइस मेल जैसे रिकॉर्ड भी शामिल हैं.
महिलाओं व बच्चों से जुड़े अपराध
महिलाओं व बच्चों से जुड़े अपराधों में धारा 63-99 तक रखा गया है. अब दुष्कर्म को धारा 63 से परिभाषित किया गया है. रेप की सजा को धारा 64 में बताया गया है. इसके साथ ही गैंगरेप के लिए धारा 70 है . सेक्सुअल हरासमेंट का अपराध धारा 74 में परिभाषित किया गया है. नाबालिग से रेप के मामले या गैंगरेप के मामले में अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है. धारा 77 में स्टॉकिंग (Stalking) को परिभाषित किया गया है, वहीं दहेज हत्या धारा-79 में और दहेज- प्रताड़ना धारा-84 में बताया गया है. शादी का झांसा या वादा कर संबंध बनाने वाले अपराध को रेप से अलग अपराध बनाया गया है यानी उसे रेप की परिभाषा में नहीं रखा गया है.
कत्ल को इस तरह किया गया है परिभाषित
सबसे बड़ी बात, सरकार ने मॉब लिंचिंग को भी अपराध के दायरे में रखा है. शरीर पर चोट करने वाले अपराधों को धारा 100-146 तक परिभाषित किया गया है. मर्डर के लिए सजा धारा 103 में बताई गई है. धारा 111 में संगठित अपराध में सजा का प्रावधान है. धारा 113 में टेरर ऐक्ट बताया गया है. मॉब लिंचिंग मामले में भी 7 साल कैद या उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है.
मैरिटल रेप के लिए क्या है?
18 वर्ष से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाए जाते हैं तो वह रेप नहीं माना जाएगा. शादी का वादा कर संबंध बनाने को रेप की कैटिगरी से बाहर कर दिया गया है. इसे धारा 69 में अलग से अपराध बनाया गया है. इसमें कहा गया है कि अगर कोई शादी का वादा कर संबंध बनाता है और वह वादा पूरा करने की मंशा नहीं रखता है या फिर नौकरी का वादा कर या प्रमोशन का वादा कर संबंध बनाता है तो दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल कैद की सजा हो सकती है. IPC में यह रेप के दायरे में था.
राजद्रोह की धारा नहीं
भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह से जुड़ी अलग धारा नहीं है. IPC 124A राजद्रोह का कानून है. नए कानून में देश की संप्रभुता को चुनौती देने और अखंडता पर हमला करने के खिलाफ जैसे मामलों को धारा 147-158 में परिभाषित किया गया है. धारा 147 में कहा गया है कि देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने पर दोषी पाए जाने पर फांसी या उम्रकैद होगी. धारा 148 में इस तरह की साजिश करने वालों को उम्रकैद और हथियार इकट्ठा करने या युद्ध की तैयारी करने वालों के खिलाफ धारा 149 लगाने का प्रावधान है.
धारा 152 में कहा गया है कि अगर कोई जानबूझकर लिखकर या बोलकर या संकेतों से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रदर्शन करके ऐसी हरकत करता है, जिससे कि विद्रोह फूट सकता हो, देश की एकता को खतरा हो या अलगाव और भेदभाव को बढ़ावा देता हो तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद या फिर 7 साल की सजा है.
मेंटल हेल्थ : मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने क्रूरता माना गया है. इसे धारा 85 में रखा गया है. इसमें कहा गया है कि अगर किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए कार्रवाई होती है, तो वह क्रूरता के दायके में आएगी. अगर महिला को चोट पहुंचाई जाती है या उसके जीवन को खतरा होता है तो या फिर हेल्थ या फिज़िकल हेल्थ को खतरे में जाता है तो दोषी को 3 साल की सजा मिलने का प्रावधान है.
संगठित अपराध: इन्हें धारा 111 में रखा गया है. इसमें कहा गया है कि अगर कोई शख्स ऑर्गेनाइज्ड क्राइम सिंडिकेट चलाता है, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग करता है, जबरन वसूली करता है या आर्थिक अपराध करता है तो दोषी को फांसी या उम्रकैद हो सकती है.
चुनावी अपराध की धाराः चुनावी अपराध को धारा 169-177 तक रखा गया है. संपत्ति को नुकसान, चोरी, लूट, डकैती आदि मामले को धारा 303-334 तक रखा गया है. मानहानि का ज़िक्र धारा 356 में है.
धारा 377: नए बिल में धारा 377 यानी अप्राकृतिक यौनाचार को लेकर कोई प्रावधान साफ नहीं किए गए हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बालिगों द्वारा बनाए गए यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था. महिला के साथ अप्राकृतिक यौनाचार रेप के दायरे में है. लेकिन बालिग पुरुष की मर्जी के खिलाफ और पशुओं के साथ अप्राकृतिक यौनाचार पर बिल में प्रावधान नहीं है.
नए कानूनों में क्या है आतंकवाद?
अब तक आतंकवाद की कोई परिभाषा नहीं थी, लेकिन अब इसकी परिभाषा है. इस कारण अब कौनसा अपराध आतंकवाद के दायरे में आएगा, ये निश्चित हो गया है. भारतीय न्याय संहिता की धारा 113 के मुताबिक, जो कोई भारत की एकता, अखंडता, और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा.
आतंकी कृत्य में क्या-क्या जोड़ा?
आतंकवाद की परिभाषा में ‘आर्थिक सुरक्षा’ शब्द को भी जोड़ा गया है. इसके तहत, अब जाली नोट या सिक्कों की तस्करी या चलाना भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा. इसके अलावा किसी सरकारी अफसर के खिलाफ बल का इस्तेमाल करना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा. नए कानून के मुताबिक, बम विस्फोट के अलावा बायोलॉजिकल, रेडियोएक्टिव, न्यूक्लियर या फिर किसी भी खतरनाक तरीके से हमला किया जाता है जिसमें किसी की मौत या चोट पहुंचती है तो उसे भी आतंकी कृत्य में गिना जाएगा.
आतंकी गतिविधि के जरिए संपत्ति कमाना भी आतंकवाद
इसके अलावा देश के अंदर या विदेश में स्थित भारत सरकार या राज्य सरकार की किसी संपत्ति को नष्ट करना या नुकसान पहुंचाना भी आतंकवाद के दायरे में आएगा. अगर किसी व्यक्ति को पता हो कि कोई संपत्ति आतंकी गतिविधि के जरिए कमाई गई है, उसके बावजूद वो उस पर अपना कब्जा रखता है, तो इसे भी आतंकी कृत्य माना जाएगा.
भारत सरकार, राज्य सरकार या किसी विदेशी देश की सरकार को प्रभावित करने के मकसद से किसी व्यक्ति का अपहरण करना या उसे हिरासत में रखना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा.
दया याचिका पर भी बदला नियम
मौत की सजा पाए दोषी को अपनी सजा कम करवाने या माफ करवाने का आखिरी रास्ता दया याचिका होती है. जब सारे कानूनी रास्ते खत्म हो जाते हैं तो दोषी के पास राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करने का अधिकार होता है. अब तक सारे कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद दया याचिका दायर करने की कोई समय सीमा नहीं थी. लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 (1) के तहत, सारे कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद दोषी को 30 दिन के भीतर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करनी होगी. राष्ट्रपति का दया याचिका पर जो भी फैसला होगा, उसकी जानकारी 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के गृह विभाग और जेल के सुपरिंटेंडेंट को देनी होगी.
किन अपराधों में मिलेगी कम्युनिटी सर्विस की सजा?
- धारा 202: कोई भी सरकारी सेवक किसी तरह के कारोबार में शामिल नहीं हो सकता. अगर वो ऐसा करते हुए दोषी पाया जाता है तो उसे 1 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा या फिर कम्युनिटी सर्विस करने की सजा मिल सकती है.
- धारा 209: कोर्ट के समन पर अगर कोई आरोपी या वयक्ति पेश नहीं होता है तो अदालत उसे तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा या कम्युनिटी सर्विस की सजा सुना सकती है.
धारा 226: अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी सेवक की काम में बाधा डालने के मकसद से आत्महत्या की कोशिश करता है तो एक साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों या फिर कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जा सकती है.
- धारा 303: पांच हजार रुपये से कम कीमत की संपत्ति की चोरी करने पर अगर किसी को पहली बार दोषी ठहराया जाता है तो संपत्ति लौटाने पर उसे कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जा सकती है.
- धारा 355: अगर कोई व्यक्ति नशे की हालत में सार्वजनिक स्थान पर हुड़दंग मचाता है तो ऐसा करने पर उसे 24 घंटे की जेल या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों या फिर कम्युनिटी सर्विस की सजा मिल सकती है.
- धारा 356: अगर कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर, इशारे से या किसी भी तरीके से दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो मानहानि के कुछ मामलों में दोषी को 2 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों या कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जा सकती है.
अब आईपीसी की धाराओं की जगह, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) होगी लागू
@302 (हत्या) की जगह होगी_103
@307 (हत्या का प्रयास)_109
@323 (मारपीट) 115
@354(छेड़छाड़) की जगह_74
@354ए (शारीरिक संपर्क और आगे बढ़ना)_76
@354बी (शारीरिक संस्पर्श और अश्लीलता_75
@354सी (ताक-झांक करना)_77
@354डी (पीछा करना)_78
@363 (नाबालिग का अण्डरण करस)_139
@376 (रेप करना)_64
@392 (लूट करना)_309
@420 (धोखाधड़ी)_318
@506 (जान से मारने की धमकी देना_351
@304ए (उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना_106
@304बी (दहेज हत्या)_80
@306 (आत्महत्या के लिए उकसाना_108
@509(आत्महत्या का प्रयास करना_79
@286(विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण)_287
@294( गाली देना या गलत इशारे करना)_296
@509 लज्जा भंग करना)_79
@324 जानबूझकर चोट पहुंचाना)_118(1)
@325 (गम्भीर चोट पहुंचाना)_118(2),
@353 (लोकसेवक को डरा कर रोकना_121
@336 दूसरे के जीवन को खतरा पहुंचाना_125
@337 (मानव जीवन को खतरे वाली चोट पहुंचाना)_125(ए)
@338 (मानव जीवन को खतरे वाली चोट_125(बी)
@341 (किसी को जबरन रोकना_126
@284 विषैला पदार्थ के संबंध में अपेक्षा पूर्ण आचरण_286
@290 (अन्यथा अनुबंधित मामलों में लोक बाधा दंड)_292
@447 अपराधिक अतिवार_329(3)
@448 (गृह अतिचार के लिए दंड)_329(4)
@382 (चोरी के लिए मृत्यु क्षति_304
@493 दूसरा विवाह करना)_82
@495ए (पति या उसके रिश्तेदार द्वारा क्रूरता)_85