… और ये कब तक ?
सरकार कहती है ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ … लेकिन बेटी हमारी पढ़ी भी डॉक्टर भी बनी लोगों के जीवन भी बचाई और बचा रही थी। लोगों की जान बचाने के लिए वह रात on call ड्यूटी पर थी, लेकिन वह खुद को पर हमारे ही समाज के बीच पल रहे दरिंदों से बचाने में नाकाम रही।
अंधेरा नहीं था, सूनसान सड़क नहीं थी, पूरे थे कपड़े मेरे, कोई तड़क-भड़क नही थी…!
जेब मे कलम थी, मेरे गले में आला था, बदन पे लंबा सफेद कोट भी मैंने डाला था…!!
फिर ना जाने क्या गलती कर दी मैंने, अपनी जान देके ये सज़ा भी भर दी मैंने…!
साथ मे लड़ेंगे तो, हार पाप की भी होगी, किसी गली के मोड़ पे, बेटी आप की भी होगी…!!
उन अंतिम क्षणों में उनकी दुर्दशा अकल्पनीय है
उसके पिता ने उसे नग्न अवस्था में फर्श पर पड़ा हुआ पाया। उसके शरीर के निचले हिस्से पर कोई कपड़ा नहीं था। उसकी Pelvic Bone (कूल्हे की हड्डी) टूटी हुई थी। हाथ-पैर विकृत थे और उसकी आंखों में चश्मे के टुकड़े टूटे हुए थे और लगातार खून बह रहा था। दोनों टांगों को चीर दिया गया था! दोनों पैर राइट एंगल में पड़े हुए थे। एक पैर बेड के इस तरफ और एक पैर बेड के उस तरफ। उन अंतिम क्षणों में उनकी दुर्दशा अकल्पनीय है।
उसके शरीर में 100 ग्राम से अधिक वीर्य पाया गया। साज़िश का सच आने से छिपा लिया गया। एक बलि का बकरा हिरासत में है
उसके माता-पिता को अपराध स्थल पर पहुंचने के 3 घंटे बाद तक उसके शव से संपर्क करने से मना कर दिया गया। उसके शरीर में 100 ग्राम से अधिक वीर्य पाया गया। साज़िश का सच आने से छिपा लिया गया। एक बलि का बकरा हिरासत में है। principal ने कहा कि ‘वह मानसिक रोगी थी और सुसाइड कर ली है।’ उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अगले दिन उन्हें एक बड़े मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया।
सीबीआई को ट्रांसफर होने के बाद अस्पताल में रेनोवेशन का काम शुरू हुआ। इस बिंदु पर अब यह केवल डॉक्टर का मामला नहीं रह गया है, यह सिर्फ अमानवीय है। हम साल-दर-साल अमानवीयता के निचले स्तरों पर जा रहे है। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार और भारत सरकार को इसपर त्वरित संज्ञान लेना चाहिए …और दोषियों को फांसी दिलवाना चाहिए।
दोष हमारा और आपका है
मूर्ख वे थे, जिन्हें यह भी उम्मीद थी कि निर्भया मामले के बाद सुधार होंगे। 12 साल हो गये। कुछ नहीं बदला है। दोष किसी पार्टी, नेता का नहीं है.. हमारा है। ऐसे लोग समाज में भरे पड़े हैं जो मौके की तलाश में होते हैं जिनकी दूषित नज़र बहन – बेटियों पर होती है और यह जानते हुए भी उनका सामाजिक बहिष्कार नहीं किया जाता और लोग रिश्ते निभाते चले जाते हैं। दोष हमारा और आपका है।