जमीन पर एक चटाई, एक तकिया, एक चादर। बाकी कमरा कागजात और किताबों से भरा
यह मेधा पाटेकर हैं। अपने ऑफिस में अपने बिस्तर पर बैठी दाल-बड़ी-बड़ी मोटी चपाती खा रही हैं। यह कमरा उनके सोने का भी कमरा है, उनके पढ़ने का भी और उनका ऑफिस भी। उनका बिस्तर है- जमीन पर एक चटाई, एक तकिया, एक चादर। बाकी कमरा कागजात और किताबों से भरा। यह तस्वीर उनके बड़वानी स्थित ऑफिस की है। मेधा जी एक सूती धोती, गले में एक डोरी से लटका चश्मा और हवाई चप्पल पहने आदिवासी इलाकों से लेकर दिल्ली तक खाक छानती रहती हैं।
सरदार सरोवर बांध का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांध का उद्घाटनके बाद भी विस्थापितों को मुआवजा नहीं मिला था। हर दिन इस दफ्तर में दर्जनों या सैकड़ों लोग आते थे। ये वो लोग थे जिनकी जमीन-खेत या घर-बार सब कुछ बांध क्षेत्र में चला गया था और उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला था। मेधा पाटेकर का काम था हर दिन अलग-अलग दफ्तरों में इन लोगों की याचिकाओं को पहुंचाना और उनके लिए उचित मुआवजा मांगना।
जिन्होंने सैकड़ों आदिवासी गरीबों और कमजोर लोगों को उचित मुआवजा दिलवाया, उन्हें भ्रष्ट बताकर जेल में डालने की कवायद चल रही है
मेधा पाटेकर ने अपनी पूरी जिंदगी पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने में लगा दी। सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को न्याय दिलाने के लिए मेधा पाटेकर एकमात्र आवाज रहीं। उन्होंने सैकड़ों आदिवासियों गरीबों और और कमजोर लोगों को उचित मुआवजा भी दिलवाया लेकिन आज उन्हें भ्रष्ट बताकर उन्हें जेल में डालने की कवायद चल रही है।
किसी समाज का पतन कैसे होता है यह देखने के लिए मेधा पाटेकर का उदाहरण सबसे मुफीद है। देश की सबसे गरीब और लाचार जनता की पूरे जीवन सेवा करने के बाद वे चुनाव लड़ीं तो जनता ने उनका साथ नहीं दिया। अब बाकी समाजसेवियों की तरह उन्हें भी प्रताड़ित किया जा रहा है। मेधा जी और उनके एनजीओ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने 13 करोड़ का गबन किया है। इसे लेकर उनके खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया है।
13 साल से न्याय की आस में जूझते एक गांधीवादी व्यक्ति के पास बैंक लुटेरे विजयमाल्या की तरह कोठा-अटारी नहीं, लंदन में फ्लैट नहीं
सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों के नरसंहार की जांच की मांग करने वाले हिमांशु कुमार पर कल कोर्ट ने 5 लाख का जुर्माना लगा दिया है। Himanshu Kumar पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा। 13 साल से न्याय की आस में एक गांधीवादी व्यक्ति, जूझता रहा। उसने सुख-सुविधा की जिंदगी न जी। अपने लिए कोई कोठा-अटारी नहीं। बैंक लुटेरे विजयमाल्या की तरह लंदन में फ्लैट नहीं।
2009 में, सुकमा ज़िले के गोमपाड़ में 16 आदिवासियों को तथाकथित फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने और एक मासूम बच्चे का हाथ काटने के मामले में न्याय के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अब जो न्याय मिला है, क्या वही प्रेयर में था? केस खारिज तो हुआ ही, उल्टे चार हफ्ते में 5 लाख देने और छत्तीसगढ़ सरकार को धारा 211 के तहत उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का निर्देश मिला। यही न्याय हुआ है।
जहां भगोड़े और लुटेरे विजयमाल्या पर दो हजार जुर्माना लगा, वहीं गांधीवादी पर 5 लाख?
हिमांशु कुमार अपने लिए क्या मांग रहे थे? वे जवानी में आदिवासियों की भलाई के लिए बस्तर आये और वहीं बस गए। वनवासी चेतना आश्रम बनाकर आदिवासियों के बीच काम करने लगे। यही चेतना निर्माण तो घातक हुई? ठीक सुधा भारद्वाज और फादर स्टेंन स्वामी की तरह आदिवासियों के पक्ष में खड़ा होना अपराध बन गया। हिमांशु कुमार तो पुरस्कार योग्य थे मगर भगोड़े और लुटेरे विजयमाल्या पर दो हजार जुर्माना जहां लगा, वहीं गांधीवादी पर 5 लाख?
यह न्यू इंडिया का अमृतकाल है। इसे समाजसेवी और बुद्धिजीवी नहीं चाहिए। अब दंगाई, लुटेरे और डकैत चाहिए। अपनी युवावस्था में हमारे लिए जितने लोग समाज के आदर्श थे, आज वे सब अपराधी हैं और समाज में जहर घोलने वाले निष्कंटक राज कर रहे हैं। जो जितना बड़ा जहरीला, उसको उतना बड़ा पद।