क्या इलाके को हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव में पूरी तरह से फिट बैठाने का है बीजेपी का प्रयास ?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सीमांचल के सहारे लोकसभा 2024 का आगाज करने 23 और 24 सितंबर को पूर्णिया और किशनगंज के दौरा पर आए थे। स्वाभाविक है यह इलाका बीजेपी के हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव में पूरी तरह से फिट बैठता है।
ऐसे में नीतीश कुमार के अलग होने के बाद बिहार की राजनीति में बने रहने के लिए अभी से ही यूपी की तरह यहां भी कैराना की खोज बीजेपी ने शुरु कर दी है। हालांकि, सीमांचल के अररिया, किशनगंज कटिहार और पूर्णिया इलाके में बीजेपी की पकड़ मजबूत हो इसके लिए संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा 1981 से ही कोशिश हो रही है, लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली है।
पिछले विधानसभा चुनाव में इन इलाकों में चिराग फैक्टर भी प्रभावी नहीं रहा था
वैसे, बीजेपी का कोई बड़ा नेता पहली बार बिहार के इन इलाकों में सेंधमारी करने की मुहिम शुरू करने आया था, कितना सफल होगा कहना मुश्किल है। लेकिन पहली बार बड़ी कोशिश शुरु हो चुकी है, ये जरूर दिख रहा है। …और निशाने पर नीतीश कुमार हैं, क्योंकि इस इलाके में अभी भी नीतीश कुमार की पकड़ मजबूत है पिछले विधानसभा चुनाव में इन इलाकों में चिराग फैक्टर भी प्रभावी नहीं रहा था।
चुनावी समीकरण
सीमांचल में चार लोकसभा क्षेत्र हैं जहां बिहार का सर्वाधिक मुस्लिम वोटर हैं। किशनगंज यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 67 फीसदी है। कटिहार जहां मुस्लिम वोटर की संख्या 38 फीसदी, अररिया जहां 32 फीसदी है और पूर्णिया जहां 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है।
2014 के मोदी लहर में भी ये सारी सीटें बीजेपी हार गयी थी
इन लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो एनडीए के साथ जब-जब नीतीश कुमार रहे, चाहे 2009 का लोकसभा चुनाव हो या 2019 का लोकसभा चुनाव, दोनों में एनडीए ने जीत हासिल की। नीतीश कुमार अकेले चुनाव लड़े तो 2014 के मोदी लहर में भी ये सारी सीटें बीजेपी हार गयी थी, मतलब इन इलाकों में मुस्लिम वोटर के अलावे बड़ी संख्या में अति-पिछड़े वोटर हैं और जब तक अति-पिछड़ा वोटर को साधने में बीजेपी कामयाब नहीं हो जाती है, तब तक बहुत मुश्किल है इन इलाकों में बीजेपी की वापसी।
वैसे, ये जो इलाका है पूरी तौर पर कृषि आधारित इलाका है और शहरीकरण नहीं के बराबर हुआ है। वहीं, यादव जो हिन्दू में मजबूत तबका है, उसमें अभी भी लालू-परिवार का तिलिस्म पूरी तौर पर खत्म नहीं हुआ है। यू कहें तो अभी भी मजबूत स्थिति में है। ऐसे में इन इलाकों में हिन्दू-स्लिम नैरेटिव को आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल है। साथ ही, इन इलाकों में बीजेपी का वैसा जमीनी नेता पिछड़ी और अति-पिछड़ी जाति में नहीं है जो माहौल बना सके।
आज भी जदयू का सबसे अधिक विधायक इन्हीं इलाकों से जीत कर आये हैं
अररिया के सांसद जरुर अति-पिछड़ी जाति से आते हैं लेकिन वो उतने प्रभावी नहीं हैं। वैसे, यह इलाका कभी राजद का गढ़ माना जाता था लेकिन नीतीश कुमार यादव के खिलाफ अति-पिछड़ों की राजनीति करके राजद को इन इलाकों से सफाया कर दिया था और अभी भी जदयू का सबसे मजबूत किला यही इलाका है। कटिहार और पूर्णिया में जदयू का सांसद हैं और आज भी जदयू का सबसे अधिक विधायक इन्हीं इलाकों से जीत कर आये हैं।
अमित शाह के दौरा के बाद महागठबंधन इन इलाकों में गांव-गांव में सम्मेलन करने का निर्णय लिया है
इसलिए बीजेपी के लिए और भी बड़ी चुनौती है, क्योंकि नीतीश कुमार के साथ जो वोटर हैं उसको हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव में बांटना, यादव की तुलना में मुश्किल है। वैसे, अमित शाह की यात्रा को लेकर जदयू कुछ ज्यादा ही सचेत है क्योंकि उन्हें पता है कि इस इलाके में नीतीश की पकड़ कमजोर हुई तो नीतीश की सियासत ही खत्म हो जायेंगी और यही वजह है कि अमित शाह के दौरा के बाद महागठबंधन इन इलाकों में गांव-गांव में सम्मेलन करने का निर्णय लिया है।