पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर प्रासंगिक सवाल
आज से ठीक 31 वर्ष पूर्व 21 मई 1991 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर की एक चुनावी सभा में बम विस्फोट कर के कर दी गयी थी। … लेकिन राजीव गांधी की हत्या का पूरा सच कभी सामने नहीं आ सका, उनकी हत्या से सम्बंधित एक नहीं अनेक सवाल आज तक अनुत्तरित ही रहे हैं।
राजीव गांधी मात्र एक समान्य नागरिक या राजनेता नहीं थे
राजीव गांधी अभूतपूर्व ऐतिहासिक बहुमत के साथ 5 वर्ष तक इस देश के प्रधानमंत्री रहे थे। ऐसे व्यक्ति की जघन्य हत्या तथा उस हत्या से जुड़े अनेकानेक अनुत्तरित तथ्यात्मक प्रश्नों की लम्बी श्रृंखला कई सन्देहों को जन्म देती है। आज राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर उन प्रश्नों-तथ्यों की चर्चा प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी है।
इतिहास ने अपनी आंखें बंद नहीं की है
आपको यह तथ्य चौंकाएगा कि एयरपोर्ट से सभास्थल तक की लगभग 50 किमी लम्बी यात्रा में राजीव गांधी के साथ उनकी कार में बैठकर, उनको सभास्थल तक लेकर गये जीके मूपनार नाम का तमिलनाडु का सबसे बड़ा कांग्रेस नेता सभास्थल पर कार के पहुंचने के बाद कार से उतरकर राजीव गांधी के साथ मंच पर नहीं गये थे। इसके बजाय सिगरेट पीने मंच से दूर चले गये थे। राजनीति की थोड़ी-बहुत समझ रखने वाला व्यक्ति यह समझ सकता है कि राजनीतिक रूप से यह कितना अस्वाभाविक और असम्भव घटनाक्रम था।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है- प्रधानमंत्री पद को थोड़ी देर के लिए अपने दिमाग से निकाल दीजिये और सोचिए कि क्या यह सम्भव है कि राजनेता नरेन्द्र मोदी को किसी चुनावी सभास्थल तक लेकर जानेवाला उस प्रदेश का सबसे बड़ा भाजपाई नेता कार से उतर कर उन्हें मंच पर ले जाने के बजाय सिगरेट पीने के लिए मंच से दूर चला जाए?
ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से जीके मूपनार ने ऐसा ही किया था और जीके मूपनार की सिगरेट खत्म होने से पहले ही मंच पर हुए बम विस्फोट ने जब राजीव को मौत के घाट उतार दिया था, उस समय जीके मूपनार मंच से बहुत दूर, सुरक्षित दूरी पर थे।
क्या यह पूरा घटनाक्रम संयोग मात्र था?
एक दूसरी कार में एयरपोर्ट से राजीव गांधी के साथ ही चुनावी सभा स्थल तक पहुंची तमिलनाडु कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी नेता जयंती नटराजन भी राजीव गांधी के साथ मंच पर नहीं गई थी। जिस समय बम विस्फोट हुआ उस समय वो मंच से सुरक्षित दूरी पर खड़ी उस कार में ही बैठी हुई थी। उस चुनावी सभा की मुख्य कर्ताधर्ता कांग्रेसी सांसद मार्गथम चन्द्रशेखर और उसके पूरे परिवार को भी इस बम विस्फोट में खरोंच तक नहीं लगी थी। बम विस्फोट के समय यह सब मंच से सुरक्षित दूरी पर रहे थे
इनमें से किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई कोई जांच कभी नहीं की गई
कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि आज के पी. चिदंबरम उसी जीके मूपनार के राजनीतिक चेला थे। पी. वी. नरसिंह राव द्वारा की जा रही कार्रवाइयों से तिलमिला कर जीके मूपनार जब कांग्रेस छोड़कर भागे थे तब चिदंबरम भी उन्हीं की उंगली पकड़कर उनके साथ चले गये थे।
जीके मूपनार तो 2001 में मर गये लेकिन 2004 में सोनिया गांधी की यूपीए की सरकार बनने के बाद उपरोक्त सभी लोगों की जांच होने के बजाय उनकी किस्मत कैसे चमकी, राजनीति में, विशेषकर कांग्रेसी राजनीति में उनका सिक्का कैसे चला वह कहानी और चौंकाने वाली है। उपरोक्त सभी तथ्य जांच एजेंसियों की रिपोर्टों में दर्ज है।