यशराज फिल्म्स की फिल्म “पठान” के गाने में बेशरम रंग कहा गया है
शाहरुख खान की 25 जनवरी 2023 को रिलीज होने वाली फिल्म में दीपिका पादुकोण के कास्ट्यूम पर दो दिन से हंगामा मचा हुआ है। कहा जा रहा है कि फिल्म में दीपिका पादुकोण ने नग्नता और फूहड़पन की हद पार कर दी इसलिए इस फिल्म का बायकॉट करो। शाहरुख खान की नयी फिल्म “पठान” के बहिष्कार की मुहिम चल पड़ी है
फिल्म में दीपिका पादुकोण के कास्ट्यूम पर बखेड़ा कर दिया कि शाहरुख खान ने भगवा रंग की बिकनी पहना दिया है। फिल्म के कास्ट्यूम डिजाईनर मनीष मल्होत्रा, अमाईरा पुनवानी और शीतल शर्मा हैं। शाहरुख खान का कास्ट्यूम से कोई लेना-देना नहीं। निर्माता निर्देशक आदित्य चोपड़ा हैं और फिल्म यशराज फिल्म्स की है। फिल्म के गाने में बेशरम रंग कहा गया है।
कहा जा रहा है कि फिल्म में दीपिका पादुकोण ने नग्नता और फूहड़पन की हद पार कर दी इसलिए इस फिल्म का बायकॉट करो। यही काम इसी आधार पर मुसलमान या उनके मौलवी मौलाना करते तो इसे पिछड़ी या गुलामी की मानसिकता बताकर यही बहिष्कार गैंग आज दीपिका पादुकोण के साथ खड़ा होता और देश में अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दे रहा होता।
खजुराहो, सनी लियोनी, मिया खलीफा को पुरुषों की पसंदीदा कमजोरी से स्पेस मिलता है और वे शाईनिंग स्टार बनती हैं
यद्यपि फिल्मों में महिला अभिनेत्रियों द्वारा परोसी फूहड़ता और अश्लीलता फिल्मों के सफल होने का एक मंत्र भी है जो पुरुषों में कामुकता पैदा करके बाक्स आफिस पर नोट बटोरती रही है। यह फिल्मों में पुरुषों की पसंदीदा कमजोरी होती है वर्ना इस देश में सनी लियोनी को बिल्कुल स्पेस नहीं मिलता। आज मिया खलीफा फिल्मों में आजाएं तो वह भी इस देश की एक शाईनिंग स्टार बन जाएंगी।
भारत में ओटीटी पर चलने वाले तमाम “चरम सुख” जैसे सीरियल को देख लीजिए और चरमसुख ही क्यों? आश्रम और मिरज़ापुर जैसे तमाम अन्य वेब सीरीज की सफलता मर्दों में पैदा किए गए इसी कामुकता के कारण ही है। पुरूषों में कामुकता केवल महिला को निर्वस्त्र देखने से ही नहीं पैदा होती, अलग-अलग उम्र और अलग अलग मानसिकता वाले पुरुषों में इस कामुकता के पैदा होने की वजह अलग-अलग होती है मगर महिला ही मुख्य केंद्र में होती है।
इसी भारत में ‘खजुराहो’ की दीवारों पर कामुक अंगों को उकेरा जाता है और ‘कोक शास्त्र’ जैसे कामक्रीड़ा जैसा साहित्य लिखा जाता है
कहीं कम आयु के पुरुष, महिला का कुछ भी देख कर कामुक हो जाते हैं तो कहीं बड़ी उम्र के पुरुष जो तमाम बसंत देख चुके होते हैं, उनमें कामुकता पैदा होने का कारण महिला के शरीर का और अधिक इक्सपोज़र होता है। और यह हर दौर में होता रहा है। औरतों का इसी दुनिया में भेड़-बकरी की तरह बेचने खरीदने का बाज़ार भी लगता रहा है तो इसी दुनिया में ‘खजुराहो’ जैसी तमाम इमारतों की दीवारों पर कामक्रीड़ा और शरीर के कामुक अंगों को प्रमुखता से उकेरा भी जाता रहा है और ‘कोक शास्त्र’ जैसे कामक्रीड़ा से संबंधित तमाम साहित्य भी लिखे जाते रहे हैं।
हर दौर में महिलाओं को भोग-विलास का साधन बनाने का माध्यम अलग अलग रहा है और अपने घर की महिलाओं को संस्कृत और संस्कार का पाठ पढ़ाकर पर पुरूषों के कामुकता की वजह बनाने से रोकने वाला यही समाज पहली फुर्सत में ही बैंकाक-पटाया की फ्लाइट पकड़ लेता है। समाज की यही हकीकत है और इसका विरोध करो तो 1400 साल पहले की गुलामी की मानसिकता और पिछड़ापन कहकर गालियां दी जाती हैं।
दोषी जनता है उनके बढ़ावा या मांग पर नग्न सीन और अश्लील गाने परोसे जाते हैं
बॉलीवुड फिल्मों में कुछ-एक को छोड़ कर महिलाओं को लीड रोल, इंजीनियर, वैज्ञानिक जैसे रोल नहीं दिए जाते हैं। इसके उलट महिला पात्रों के यौन पक्ष को अधिक तीव्रता से उभारा जाता है। महिलाओं को ‘सेक्स ऑब्जेक्ट’ की तरह दिखाने का चलन पूरी दुनिया की फिल्मों में और अब अपने देश भारत में भी दिख रहा है। बात करें ‘बीए पास’ या ‘ग्रैंड मस्ती’ जैसी फिल्मों की तो बॉलीवुड में लगातार हीरोइनों को सेक्सी अंदाज में बेचा गया है।
साहित्य और सिनेमा समाज का दर्पण होता है
पर इसी दौर में गुलाब गैंग, कहानी, क्वीन, मर्दानी और मैरी कॉम जैसी फिल्में भी आई हैं और इन सब ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़े हैं। धूम-3, कृष-3 और चेन्नई एक्सप्रेस फिल्मों ने भी ठीक कारोबार किया है और इन्होंने अपनी लागत निकाली है। नायिकाओं के लिए स्क्रिप्ट्स लिखने की जरूरत हैं और उन्हें केंद्र में रख कर फिल्में बनाने की। …बाकी जो नग्न है सो नग्न है, रंग कोई भी ले सकते हैं।