भाजपा बिहार में जोखिम लेने को तैयार नहीं
बिहार में विधानसभा चुनाव समय के पूर्व हो सकता है। यह नीतीश कुमार का लगभग सिंगल एजेंडा है। भाजपा इस मसले पर ज्यादा टालमटोल करेगी तो नीतीश कुमार छिटक सकते हैं। भाजपा ऐसा जोखिम लेने को तैयार नहीं है। भाजपा बिहार में नीतीश कुमार को आँख दिखाने का हस्र जानती है। उसे 50 के करीब सीटों पर सिमटना पड़ता है।
भाजपा, जदयू, राजद या कांग्रेस फ़िलहाल अपने बूते बिहार की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती
बहरहाल, भाजपा-जदयू के बीच अच्छा तालमेल है। भाजपा के कोई नेता जदयू के खिलाफ बयानबाजी नहीं करेंगे और बिहार भाजपा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगी। भाजपा अपने बूते बिहार की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती, इसलिए लम्बी प्रतीक्षा के मूड में है। उसे लगता है कि जब नीतीश कुमार सक्रिय राजनीति से सन्यास लेंगे तो सत्ता खुद भाजपा के पाले में चली आएगी।
मीसा भारती की सीट जदयू ने भाजपा की सलाह पर रालोसपा को दे दी तो विधान परिषद की सीट भाजपा ने श्रीभगवान सिंह को दी। यह बेहतर तालमेल का उदाहरण है। केंद्र में ललन सिंह की पूछ बढ़ी है और आर्थिक समिति के सदस्य बनाये गए हैं।
भाजपा पेशोपेश में है तो नीतीश कुमार आरक्षण मुद्दे को उगलने या निगलने को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। चुनाव समय पूर्व हुआ तो नौंवी अनुसूची को टाला जा सकता है
मामला नौवीं अनुसूची में 65 प्रतिशत आरक्षण को लेकर फँसता दिख रहा है। नीतीश कुमार इसमें सफल नहीं होते तो तेजस्वी यादव इसे चुनावी मुद्दा बनायेंगे। इसे जनता के बीच ले जायेंगे। भाजपा ऐसा करने पर सहमत होती है तो उसका जनाधार मत विखंडित हो जाएगा। बहरहाल, यह सबसे गम्भीर मामला है। नीतीश कुमार इस मुद्दे को उगलने या निगलने को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। भाजपा पेशोपेश में है। चुनाव समय पूर्व हुआ तो नौंवी अनुसूची को टाला जा सकता है।