बड़ा विकेट नितीश कुमार के रूप में गिरनेवाला था ?
आरसीपी अपने समर्थकों को अक्सर कहते थे कि बिहार में बड़ा विकेट गिरेगा। जिस कार्यकर्ता ने इसका खुलासा किया था वह पार्टी का बहुत बढि़या वर्कर है। मैं उससे अक्सर पूछता था कि बड़ा विकेट मतलब क्या है? वह कहता कि साहब कहते है कि देखते जाओ न समय आने पर पता चल जाएगा।
इस कार्यकर्ता के वक्तव्य आलोक में आरसीपी सिंह की रणनीति पर गौर करें तो अहसास होता है कि बड़ा विकेट नीतीश कुमार ही थे। आरसीपी सिंह तख्ता पलट की तैयारी में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही जुट गए थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही पार्टी कार्यालय में बैठे नीतीश के एक-दो करीबियों को इन्होंने चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया।
संगठन में उनलोगों को ज्यादा तरजीह दी गयी जो कार्यकर्ता बनने के लायक थे ही नहीं
जब उसने चुनाव की तैयारी शुरू की तो तो मामला नीतीश जी के पास पंहुचा। नीतीश कुमार ने कहा कि चुनाव लड़ना है तो पार्टी से पद छोड़ना होगा। इस प्रकार नीतीश के करीबी पार्टी कार्यालय हटे तो उनकी जगह आरसीपी सिंह अपने करीबी को बैठाया। संगठन में प्रकोष्ठ दर प्रकोष्ठ बनाकर समर्थक तैयार किया। लेकिन संगठन में उनलोगों को ज्यादा तरजीह दी गयी जो कार्यकर्ता बनने के लायक थे ही नहीं।
संगठन को कितना कमजोर कर दिए थे, उसका उदाहरण गांधी मैदान में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में देखने को मिला। असल खेल उस वक्त शुरू हुआ जब ये केंद्रीय मंत्री बने। पटना आने के पहले इनके कार्यकर्ता पटना और आसपास के कुर्मियों को फोन कर कहते कि इज्जत का सवाल है। अधिक से अधिक गाड़ी और आदमी को लेकर आये अन्यथा पार्टी पर भूमिहार का कब्जा हो जाएगा।
आरसीपी के यात्रा बनाम शत्ति प्रदर्शन में की कई जगहों पर जदयू से ज्यादा भाजपा के झंडे देखने को मिले
इस मैसेज का मतलब साफ था कि कुर्मी के मान-सम्मान की रक्षा करने में नीतीश सक्षम नहीं हैं, आरसीपी सिंह हैं। इस तरह के मैसेज एक बार नहीं बल्कि कई बार फैलाये गए। मंत्री बनने के बाद इन्होंने यात्रा निकाली। कई जगहों पर जदयू से ज्यादा भाजपा के झंडे देखने को मिले। क्या यह यह यात्रा रैली आदि का आयोजन शत्ति प्रदर्शन के लिए कर रहे थे?
आरसीपी सिंह, नीतीश से ज्यादा ये मोदी के एजेंडे पर काम कर रहे थे
कई मुद्दों पर पार्टी के स्टैंड से दूर मोदी भत्त की तरह निर्णय लेते हुए भी देखे गए। नीतीश से ज्यादा ये मोदी के एजेंडे पर काम कर रहे थे। इसे समझने के लिए इनके ट्विटर हैंडल को खंगाल लीजिए। इनके वैसे समर्थक जो साहब के साथ देश घूमते हैं, वे लिख रहे थे कि 31 विधायक आरसीपी सिंह के पक्ष में हैं। इसका क्या मतलब था?
सीबीआई रेड पड़ने की बात लिखकर किसे डराया जा रहा था? यह सब सोशल मीडिया पर चल रहा था तो नीतीश कुमार विधायकों की बैठक कर रहे थे। कुछ तो खिचड़ी पक रही थी जिससे नीतीश सतर्क थे। आरसीपी इसी बीच राज्यपाल से मिलते हैं फिर दिल्ली जाते हैं। फिर खबर आती है कि राज्यपाल भी दिल्ली चले गए।
आरसीपी बिहार में तख्ता पलटकर भाजपा को गद्दी सौंपना चाहते थे?
आरसीपी फिर पटना लौटते हैं उसके बाद भाजपा के नेता ट्वीट करते हैं कि जातिगत जनगणना के लिए आहूत बैठक में भाजपा शिरकत करेगी। दरसल, आरसीपी बिहार में तख्ता पलटकर भाजपा को गद्दी सौंपना चाहते थे, इसलिए राज्यपाल से मिले। राज्यपाल दिल्ली गए और बिहार की स्थिति से आलाकमान को अवगत कराया तो भाजपा को लगा कि आरसीपी के चक्कर में रहेंगे तो बिहार में लालू नीतीश फिर एक हो जायेंगे।