दोनों ही महिला आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन दोनों दोनों के सोच और मानवीय चेहरा में काफी फर्क दिखा
कल से बिहार का वह समाचार बहुत तेजी से वायरल हो रहा था जिसमें एक महिला आईएएस अधिकारी ने एक युवती द्वारा मुफ्त सेनेटरी पैड दिए जाने के सवाल पर ना केवल उसे पाकिस्तान भेजने को कह दिया, बल्कि उसे यह भी कहा कि मुफ्त में तो निरोध भी मिलेगा।
दूसरी तस्वीर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले से है। लखीमपुर जिला अस्पताल में IAS और लखनऊ मण्डल की कमिश्नर रोशन जैकब उस वक्त फफक कर रो पड़ी जब उन्होंने दीवार गिरने से जख़्मी एक बच्चे को तड़पता देखा। उपरोक्त दोनों ही महिला आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन दोनों दोनों के सोच और मानवीय चेहरा में काफी फर्क दिख रहा है।
कोई मायने नहीं रखता कि आप आईएस हैं, आईपीएस हैं, प्रमुख सचिव हैं, मुख्य सचिव हैं नेता हैं या अभिनेता हैं। मायने सिर्फ एक चीज रखती है कि सार्वजनिक जीवन में आप आम जनता के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। वैसे तो तमाम नौकरशाहों से योग्य, दृढ़ प्रतिज्ञ और बढ़िया काम करने वाले लोग समाज मे बहुतायत मौजूद हैं। सलाम आपको रोशन जैकब।
‘कल को कंडोम भी’ वाले बयान हरजोत कौर के बयान ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया
बिहार महिला विकास निगम की एमडी (CDC MD Harjot Kaur) और आईएएस अधिकारी हरजोत कौर ( Bihar IAS Harjot Kaur) के ‘कल को कंडोम भी’ वाले बयान ( Harjot Kaur Controversial Statement) ने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया। सीएम नीतीश के एक्शन लेने की बात कहने के साथ ही आईएएस हरजोत कौर ने पत्र जारी कर माफी (IAS Harjot Kaur Apologizes) मांग ली।
क्या था मामला
राजधानी पटना में महिला एवं बाल विकास निगम (Women and Child Development Corporation) द्वारा यूनिसेफ की मदद से सशक्त बेटियां समृद्धि बिहार विषय पर एक दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इस वर्कशॉप में कई छात्राएं पहुंची थी। कार्यक्रम में सरकारी अधिकारी महिला सशक्तिकरण की बात करने आए थे, लेकिन मौके पर मौजूद बाल विकास निगम की अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक हरजोत कौर बम्हरा ने एक छात्रा को कुछ ऐसा जवाब दिया, जिसे सुनने के बाद वहां मौजूद लोग हैरान रह गए। छात्रा ने सैनिटरी पैड की मांग की तो वह जींस पैंट, जूते और परिवार नियोजन की बात करने लगी।
क्या कहा महिला आईएस अधिकारी हरजोत कौर बम्हरा, WCDC एमडी ने
“आज सेनेटरी पैड मांग रही हो, कल को जींस पैंट मांगोगी। परसों सुंदर जूते और अंत में परिवार नियोजन के लिए साधन भी मुफ्त में मांग करोगी। सरकार से लेने की जरूरत क्यों है, यह सोच गलत है और कुछ खुद भी किया करो।”
आईएस अधिकारी को छात्रा का जवाब था
”मेरा सवाल (सैनिटरी पैड पर) गलत नहीं था। यह बड़ी चीज नहीं है, मैं खरीद सकती हूं लेकिन झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली इसे खरीद नहीं सकती है। मैंने सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सभी लड़कियों के लिए सवाल पूछा था। हम वहां अपनी बात रखने गए थे।”
असल में जिस समाज में किशोरावस्था में प्रवेश करने वाले बच्चों की तमाम उलझनों पर बात करना ही “पाप” समझा जाता है उस समाज में ऐसी “घटिया मानसिकता” के लोग ही तैयार होंगे l भले ही वे इस देश की प्रशासनिक सेवा में शीर्ष पद पर ही क्यों न पहुँच जाएँ।
… अथाह पैसा और ऊँचे पद के घमण्ड में चूर ऐसे अधिकारियों को न गाँव के हालातों से कोई मतलब है और न ही इन्हें किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी बालिकाओं में “माहवारी” के शुरू होने पर दिमाग में चलने वाली तमाम उलझनों से कोई मतलब है l वे सिर्फ़ अपनी पुत्री को ही बालिका समझती हैं, ग़रीब की लड़की इनके लिए कूड़ा करकट के समान है l एक ग़रीब लड़की द्वारा सेनेटरी पैड के बारे में बात करना इन्हें अखर जाता हैl
इस सम्बंध में उत्तर प्रदेश सरकार आगे है, जिसने किशोरियों की इस उलझन को समझा और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली किशोरियों के लिए “सैनेटरी पैड” भेजना शुरू कियाl आंगनबाड़ी केंद्र की कार्यकत्री द्वारा जब पहली बार इन किशोरियों के हाथ में ये सेनेटरी पैड आए तो जरूरी था उनसे पहले इस सम्बंध में बात की जाएl
स्कूल में कोई महिला शिक्षक नहीं जो बताए कि “माहवारी” क्या होती है? क्या उस अवधि में वे “अपवित्र” होती हैं? और भी कई ऐसी उलझनें जो किशोरियों को परेशान करती हैं। यहाँ दो मुद्दे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, एक क्या किशोरियों से “माहवारी” के बारे में बात की जाए? और दूसरा, “क्या किशोरियों को “सेनेटरी पैड” मुफ़्त में देना चाहिए..?”
गाँवों में और सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में किशोरियों और महिलाओं के लिए “माहवारी” का काल एक पीड़ादायक अवधि होती हैl उन्हें इस सम्बंध में सही जानकारी नहीं होती l माता पिता उनसे बात करना उचित नहीं समझते l उनमें से कई बालिकाएँ बगैर किसी कुछ बताए न जाने कितने दिनों तक “उलझन” में रहती हैं और पता नहीं कैसे इस उलझन से बाहर निकल पाती हैं?
तमाम ऐसी होती हैं जिन्हें आस पड़ोस से ग़लत जानकारियाँ मिलती हैंl वे रक्तस्राव को रोकना चाहती हैंl वे रक्तस्राव से निपटने के लिए के लिए ग़लत तरीक़े अपनाती हैंl गाँवों के हालात ये हैं कि उनमें से तमाम के पास साफ़ सूती कपड़े तक नहीं होतेl जानकारी और साधनों के अभाव के कारण वे इस अवधि में पेड़ों के पत्ते बाँधती हैंl कई ऐसी होती हैं जो कपड़े में पशुओं का गोबर लपेटकर बाँधती हैंl
गाँवों में उनमें से किसी तक सेनेटरी पैड की पहुँच नहीं हैl न जाने कैसे वे उस अवधि से निपटती हैंl उनके माता पिता उन्हें सेनेटरी पैड खरीदकर नहीं देतेl गाँवों में लोग यह जान गए हैं कि बच्चों को पढ़ाना जरूरी है लेकिन अभी वे यह नहीं जान सके हैं कि किशोरियों के लिए “माहवारी” के समय सेनेटरी पैड जरूरी हैंl इसलिए सरकारों को उन तक मुफ़्त में ये पहुँचाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिएl ठीक वैसे ही जैसे एक कल्याणकारी सरकार लोगों को मुफ़्त शिक्षा और मुफ़्त इलाज़ उपलब्ध करवाती है l
कई विद्यालय की किशोरियों ने सेनेटरी पैड पहली बार अपने हाथ में तब पकड़े थे जब सरकार ने उनके लिए ये भेजे थेl आश्चर्य इस बात का है कि एक महिला अधिकारी द्वारा बालिकाओं पर यह “घटिया” टिप्पणी उस राज्य में की गई है जिस राज्य में महिलाओं को “माहवारी” की अवधि में अवकाश की व्यवस्था की गई थीl बिहार सरकार को इस घटिया सोच की अधिकारी पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी, जिससे ये अपने दिमाग की गन्दगी से दोबारा समाज को दूषित न करें।