उस महान परम् पराक्रमी ‘क्रांति नायक’ की जननी को हम प्रायः भूल जाते हैं
‘ग़ुलाम भारत के इकलौते आज़ाद’, युवाओं के हृदय में राष्ट्रीयता व आजादी की अलख जलाने वाले, वीरता व साहस के पर्याय, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद जी स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर बरबस याद आ रहे हैं। इस पावन अवसर पर उन्हें शत्-शत् नमन करते हैं, लेकिन उस महान परम् पराक्रमी ‘क्रांति नायक’ की जननी को हम प्रायः भूल जाते हैं।
एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े व्यक्ति ने हंसते हुए कहा
आज हम ऐसे ही एक प्रसंग का जिक्र कर रहे हैं, जब शहीद आज़ाद की जननी जगरानी देवी को कहा गया था – “अरे बुढ़िया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“ जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली-सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े व्यक्ति ने हंसते हुए कहा।
आखिरी बेटा कुछ दिन पहले ही आजादी के लिए बलिदान हुआ था
“नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं“ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा। उस बुजुर्ग औरत का नाम था जगरानी देवी और इन्होंने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखिरी बेटा कुछ दिन पहले ही आजादी के लिए बलिदान हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से ‘चंदू’ कहती थी …और दुनिया उसे आजाद! जी हाँ, चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।
साँझ की बेला में दुआर बुहारती जगरानी देवी के आसपास जब लोगों की भीड़ खड़ी होने लगी तो अशुभ की आशंका से उनका हृदय काँप उठा। उन्होंने सर उठा कर कुछ लोगों का मुँह निहारा, सबके मुखड़े जैसे रो रहे थे। एकाएक सन्न हो उठे कलेजे को थाम कर उन्होंने पूछा- ”क्या चन्दू को पुलिस ने पकड़….?”
कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला। जगरानी देवी जैसे काँप उठीं… उनके मुँह से आह फूटी- “तो चन्दू की प्रतिज्ञा टूट गयी?” पीछे से किसी उत्साहित युवक ने कहा- ”नहीं माँ! चन्दू भइया की प्रतिज्ञा तोड़ दे इतनी सामर्थ्य तो यमराज में भी नहीं।” जगरानी देवी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उस युवक की ओर देखा जिसने आज उन्हें माँ कहा था। उनके हाथ से कूँची छूट गयी। उन्होंने काँपते हुए पूछा- ”तो क्या….?”
युवक ने रोते हुए कहा- ”चन्दू भइया अमर हो गए माँ! प्रयाग में जब पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया तो वे देर तक अकेले ही लड़ते रहे। जब अंत में उनके पास एक ही गोली बची तो उन्होंने स्वयं को गोली मार ली, अंग्रेजों की गोली तो उन्हें छू भी नहीं पायी …।” जगरानी देवी ने अपना बेटा खो दिया था। वे जैसे जड़ हो गयी थीं। आँखों से धार बहने लगी थी। बढ़ती हुई भीड़ चुपचाप उनका मुँह निहार रही थी। कुछ पल की चुप्पी के बाद उनके स्वर फूटे- ”तो चन्दू की टेक रह गयी!”
युवक ने उत्साहित हो कर कहा- ”चन्दू भइया के मरने के आधे घण्टे बाद तक कोई सिपाही उनके पास जाने का साहस न कर सका माँ!” जगरानी देवी कराह उठीं। युवक ने उन्हें ढांढस देने के लिए कहा- ”लोग कह रहे हैं कि प्रयाग के पार्क में इतनी भीड़ थी जिनती आज तक कभी नहीं हुई होगी। पूरा देश ‘चंद्रशेखर आजाद अमर रहें’ के नारे लगा रहा है माँ!”
जगरानी देवी भूमि पर पसर गयी थीं। दूर स्तब्ध से खड़े लोग कुछ क्षण बाद उनके निकट आने लगे। महिलाओं ने रोती माँ को ढांढस देने का प्रयास किया। अचानक रोती जगरानी के मुह पर एक अजीब मुस्कान फैल उठी, उन्होंने अजीब से गर्व के साथ कहा- ”ऐसी टेक तो भीष्म ने भी न निभाई थी… ।”
भीड़ जैसे उत्साह से उबल पड़ी थी। किसी ने कहा- ”हमारा चन्दू राजा था काकी! ऐसी मृत्यु कहाँ किसी को मिलती है…। वह विश्व के सभी बलिदानियों का सिरमौर बन गया है। जगरानी ने उसी अजीब से स्वर में कहा- ”मैं जीवन भर सोचती रही कि मुझ दरिद्र का नाम ‘जगरानी’ क्यों है, आज चन्दू सच में मुझे जगरानी बना कर चला गया।”
कुछ पल बाद उन्होंने पूछा- ”किसी ने चन्दू का शव देखा?” उत्तर मिला- ”नहीं! चंदू भइया की देह पुलिस उठा ले गयी। पर देखने वाले बता रहे थे उनके मुख पर वही सदैव सी मुस्कान फैली हुई थी। लगता था जैसे अभी मूछ उमेठ कर मुस्कुरा रहे हों।” बूढ़ी फफक पड़ी- “मुस्कुराएगा क्यों नहीं? जो चाहता था वह तो कर ही लिया।”
”भले मेरा बेटा छिन गया, पर उसे तो उसकी माँ मिल गयी… जाने दे!” भड़ खड़ी थी पर सन्नाटा पसरा था। कुछ लोगों ने उत्साह में नारे लगाए। माँ निःशब्द पड़ी थी। किसी ने एक लंबी आह भर कर कहा- ”आजाद जैसे वीर ऐसी ही माँओं की कोख से जन्मते हैं। एक आजाद बनाने के लिए जाने कितनी बार ईश्वर सर पटकता होगा।”
आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था
हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी।
कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं
अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माता उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं।
कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं
लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी।
आज़ाद जी को दिए एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने घर झाँसी लाए
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही। चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था।
मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ
अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दासमाहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की। मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था। … देश के लिए बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों के परिवारों की ऐसी ही गाथा है।