धरती कहे पुकार के : विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष
विख्यात विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ रिसर्च में इसका जिक्र है। जिसमें कहा गया है कि अल-नीनो से प्रभावित देशों में आंतरिक उथल-पुथल ला-नीना प्रभावित देशों से कहीं ज्यादा होता है। रिसर्चरों का दावा है कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका में सूखा और इसकी वजह से गृह युद्ध की जो स्थिति है।
वह सीधे-सीधे जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। लेकिन रिसर्चरों का कहना है कि सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि कुछ जगहों पर मनुष्य निर्मित ग्लोबल वार्मिंग है। इसकी वजह से हिंसा फैल रही है, जो आने वाले दशकों में भयावह रूप ले सकती है।
अल-नीनो का प्रभाव
पहले इस क्षेत्र को अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन के नाम से जाना जाता था, जो दो से सात साल के बीच आया करता था। इसका प्रभाव नौ महीने से दो साल तक रहता था। इसकी वजह से खेती, जंगल और मछली पालन में भारी नुकसान उठाना पड़ता था। इसके कारण आने वाला अल नीनो बारिश के तरीकों और तापमान में अजीबोगरीब परिवर्तन कर देता है।
इसकी वजह से अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया और आस्ट्रेलिया में जबरदस्त गर्मी पड़ती है और शुष्क हवाएं चलती हैं। जब यह चक्र उलटी तरफ चलता है, तो उससे ला-नीना का उद्भव होता है, जो प्रशांत के पूर्वी हिस्सों में भारी बारिश का कारण बनता है।
रिसर्च में इन मौसमी बदलावों को 1950-2004 के बीच के काल में सीमा संघर्ष और गृह युद्ध जैसी हिंसक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में देखा गया, तो चौंकाने वाले नतीजे आये। इन आंकड़ों में 175 देशों के 234 संघर्षों को शामिल किया गया। इस दौरान हुई लड़ाइयों में 1000 से ज्यादा लोगों की जान गयी।
क्या है अल नीनो
अल-नीनो एक ऐसी मौसमी परिस्थिति है जो प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग यानी दक्षिण अमेरिका के तटीय भागों में महासागर के सतह पर पानी का तापमान बढ़ने की वजह से पैदा हो रही है। माना जाता है कि अल-नीनो लगभग सात सालों में एक बार लौटता है। कुल मिलाकर अल नीनो की वजह से दुनिया भर में 21 प्रतिशत गृह युद्ध हुए हैं।
इनमें से 30 प्रतिशत देश अल नीनो प्रभावित इलाकों में हैं। मुख्य रिसर्चर सोलोमन सियांग का कहना है कि अल नीनो एक अदृश्य कारण है, जिसकी वजह से सीमा संबंधी संघर्ष हुआ। उनका कहना है हालांकि हम इन सभी मुद्दों पर एक साथ नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं। लेकिन हम कह सकते हैं कि अल नीनो की वजह से बड़ी संख्या में गृह युद्ध हो सकता है।
भविष्य में विवादों का जड़ बनेगा पानी
विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में पानी पर युद्ध होंगे। दो चीजें लोगों के लिए बहुत जरूरी है पानी और खाद्य सामग्री। पानी तो अनाज पैदा करने के लिए भी बेहद जरूरी है। विश्व आबादी की वृद्धि और साथ ही पानी के बढ़ते इस्तेमाल पर एक नजर डालने से जलवायु परिवर्तन के दौर में भविष्य के लिए कोई अच्छी उम्मीद नहीं पैदा होती।
विश्व भर में 263 अंतर्राष्ट्रीय नदियां 145 देशों की सीमा से होकर गुजरती है जहां दुनिया की 40 फीसदी आबादी और 60 फीसदी मीठा पानी है
खासकर जब विश्व की अधिकांश नदियां अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से होकर गुजरती हैं। यूनेस्को की 2003 की एक रिपोर्ट में चौंकानेवाले आंकड़े हैं। विश्व भर में 263 अंतर्राष्ट्रीय नदियां 145 देशों की सीमा से होकर गुजरती है। वहां दुनिया की 40 फीसदी आबादी रहती है। उनके पास इस्तेमाल के लिए 60 फीसदी मीठा पानी है। कम से कम 19 नदियां पांच से अधिक देशों से होकर गुजरती है।
अकसर पड़ोसियों के बीच ऐसी नदियों पर बांध बनाने के कारण विवाद होते हैं। एशिया में पानी का विवाद दोनों उभरती ताकतों भारत और चीन के बीच होने की संभावना है। चीन की प्यास अभूतपूर्व है। साथ ही इलाके की कुछ महत्वपूर्ण नदियों जैसे मेकांग या ब्रह्यपुत्र का उद्गम चीन में है। चीन दक्षिण से सूखे उत्तर की ओर पानी ले जाने के लिए बड़ी बांध परियोजना पर काम कर रहा है।
भारत को संदेह है कि चीन हिमालय से भी पानी ले जा सकता है। चीनी पानी की दिशा बदलने की परियोजना पर काम कर रहे हैं। दोनों देशों में जनमत ने पानी के मुद्दे पर बोलना शुरू कर दिया है। पानी का मुद्दा आने वाले सालों में बड़ा अहम मुद्दा होगा।
तूफान के नामों का इतिहास – समुद्री तूफान जिन्हें चक्रवात भी कहते हैं, कई प्रकार के होते हैं। इनकी ताकत और बनावट पर इनके अलग-अलग नाम पड़े हैं। इन तूफानों को मुख्यतः हरिकेन या साइक्लोन कहा जाता है। हरिकेन मुख्यतः क्लॉकवाइज घूमते हैं और मुख्यतः उत्तरी गोलार्द्ध में बनते हैं। इसलिए इनको ट्रापिक साइक्लोन्स (चक्रवात) भी कहा जाता है। इन चक्रवातों को इस तरह से बांटा जा सकता हैः-
- ट्रॉपिकल डिप्रेशनः इन साइक्लोनों में बादलों की मुख्य भूमिका रहती है। ऐसे तूफानाेंं की गति 38 मील प्रतिघंटा या उससे कम होती है।
- ट्रॉपिकल स्टार्मः यह तूफान बिजली और जबरदस्त गति के साथ आगे बढ़ती है। यह काफी ताकतवर होती है। इसकी गति 39 से 73 मील प्रति घंटा होती है।
- हरिकेनः समुद्री चक्रवाती तूफानों में हरिकेन सबसे अधिक डराने वाला तूफान होता है। यह अपने निर्धारित रास्ते पर ही आगे बढ़ता है। अमेरिका में इसने अभी तक सबसे अधिक तबाही मचायी है। कैटरीना और रीटा पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका में आये प्रसिद्ध हरिकेन हैं।
हरिकेन की गति 74 मील प्रतिघंटा या अधिक भी हो सकती है। पश्चिमी उत्तर पेसिफिक क्षेत्र में हरिकेन को ‘टाइफून’ कहा जाता है, उत्तरी अटलांटिक ट्रोपिकल साइक्लोन को ‘आइरीन’ कहा जाता है, जो अमेरिका के पूर्वी तट पर तबाही मचाती है। जबकि हिन्द महासागर में आने वाले हरिकेन ‘साइक्लोन’ के नाम से जाने जाते हैं।
ट्रॉपिकल डिप्रेशन और ट्रॉपिकल स्टार्म (तूफानों) को हरिकेन से कम विनाशकारी माना जाता है। इन तूफानों के साथ होने वाली भारी बारिश, बाढ़ और मौसम की भयंकर गतिविधियां जरूर विनाशकारी भूमिका निभाती हैं। इसलिए ऐसे तूफानों में भी मानवजाति जब-तब परेशानी में पड़ती रहती है।
एक अध्ययन के मुताबिक एटलांटिक महासागर, कैरेबियन सागर और मैक्सिको की खाड़ी में हर वर्ष 10 ट्रॉपिकल तूफान बनते हैं, जिनमें से 6 हरिकेन होते हैं। पिछले तीन वर्षों में अमेरिकी समुद्री रेखा पर पांच बार हरिकेनों ने हमला किया, जिसमें से दो सबसे अधिक विनाशकारी साबित हुए।
क्या है आइरीन
‘आइरीन चक्रवात’ एक समुद्री तूफान है। यह तूफान अंध महासागर में सक्रिय हुआ था और इसने अब तक बहुत से कैरिबियाई देशों में क्षति पहुंचाई है। अब यह तूफन संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट की ओर बढ़ा। इसका उद्गम लॅास एंजिल्स के पूर्व में है।
आइरीन तूफान तीखी हवाओं, पानी की तेज बौछारों और लपलपाती बिजली की गरज से लैस हवाओं से तेजी से आगे बढ़ती है, जिसकी गति 75-80 मील प्रति घंटे होती है। यह चक्रवात का एक रूप है, जिसे नॉर्थ अटलांटिक ट्रॉपिकल साइक्लोन के नाम से भी जाना जाता है।
इसमें ज्यादा तबाही बाढ़ से होती है, क्योंकि भारी बारिश के साथ ही हवाओं के झोंको पर सवार अटलांटिक सागर का पानी भी उफनने लगता है। हरिकेन में 140 किमी- प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलती हैं। यह तूफान जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, कमजोर होता जाता है, लेकिन खतरा कुछ दिनों तक बरकरार रहता है। इसके कारण 8-12 इंच तक बारिश होती है।
समुद्र के जल स्तर में होगी 70 फुट की वृद्धि
ग्लोबल वार्मिंग और अन्य वैश्विक घटनाओं की वजह से समुद्र के जलस्तर में वृद्धि बहुत चिंता की वजह बन सकती है। इसका सबसे बड़ा असर यह होगा कि समुद्र के किनारे बसे शहरों का खतरा बढ़ जायेगा और एक बड़ी आबादी को विस्थापित होना पड़ेगा।
अभी समुद्र के जल स्तर में वृद्धि दर 2 से 3 फीट के आसपास है
इसी संदर्भ में जलवायु परिवर्तन से संबंधित इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज का कहना है कि यदि अभी हम ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस तक रोक पाने में भी सफल होते हैं, तो भी भविष्य में लगभग 12 से 22 मीटर यानि 40 से 70 फीट तक समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होना स्वाभाविक है। हालांकि, फिलहाल यह वृद्धि दर 2 से 3 फीट के आसपास है।
रर्ग्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ता कनेथ जी मिलर ने यह पता लगाने के लिए न्यूजीलैंड और प्रशांत क्षेत्र के चट्टानों एवं मिट्टी का अध्ययन किया। इस आधार पर पर्यावरण में मौजूद कार्बन-डाई-ऑक्साइड के स्तर का पता लगाया। अध्ययन के मुताबिक, आज पर्यावरण में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का जितना स्तर है उतना ही यह आज से 2.7 से 3.2 मिलयन वर्ष पहले था।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि मौजूदा समय की अपेक्षा उस समय पर्यावरण का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसके अनुसार, पानी के आयतन में अंतर पूरे ग्रीनलैंड के पिघलने के बराबर था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस तरह की घटनाओं से समुद्र के तटीय इलाकों पर व्यापक असर पड़ेगा।
समुद्र के जलस्तर में वृद्धि की सबसे बड़ी वजह ग्लेशियरों का पिघलना बताया जा रहा है। उनका कहना है कि यदि ऐसा होता है तो पूरी वैश्विक आबादी के लगभग 70 फीसदी लोग प्रभावित होंगे।
जलवायु परिवर्तन से हो सकता है विश्व-युद्ध
अब तक सिर्फ चर्चा होती रही है कि मौसमी बदलाव युद्ध का कारण बन सकता है। लेकिन अब बकायदा एक वैज्ञानिक रिसर्च से इस बात की पुष्टि की गयी है कि जलवायु परिवर्तन से हिंसा हो रही है। इसकी वजह से कई लोगों की जान गई है।