गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाने में भ्रूण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता
अमेरिका में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि गर्भवती महिलाओं के खून का डीएनए परीक्षण करने से सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाया जा सकता है और इससे भ्रूण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। अध्ययन के परिणाम ‘अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ की पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
इसमें कहा गया है। ‘शिशु के लिंग का पता करने के लिए महिला के रक्त से कोशिका मुक्त भ्रूण डीएनए का परीक्षण, मूत्र परीक्षण या सोनोग्राम की तुलना में काफी सटीक और गर्भवती महिला की गर्भाशय जांच से अधिक सुरक्षित है।’
सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु का भी लिंग ज्ञात किया जा सकता है
गर्भस्थ शिशु का अल्ट्रासाउंड भी 11 से 14 हफ्ते का होने पर ही किया जा सकता है, लेकिन रक्त के डीएनए परीक्षण के जरिये सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु का भी लिंग ज्ञात किया जा सकता है। यह डीएनए परीक्षण गर्भवती महिला के गर्भ की जांच करने से अधिक सुरक्षित है।
भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए भरोसेमंद विकल्प की उपलब्धता से गर्भपात की आशंका कम होगी
गर्भाशय जांच में भ्रूण के इर्द-गिर्द की थैली से तरल पदार्थ लिया जाता है जिससे कभी-कभार गर्भपात की आशंका रहती है। अध्ययन में कहा गया है। ‘भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए भरोसेमंद विकल्प की उपलब्धता से गर्भपात की आशंका कम होगी। और इस विधि का उन गर्भवती महिलाओं द्वारा स्वागत किया जायेगा जिन्हें भ्रूण के विकृति युक्त होने का जोखिम रहता है।’
इस अध्ययन में पूर्व के 57 मामलों की समीक्षा की गयी और इसकी सफलता दर 95 से 99 प्रतिशत तक थी। अध्ययन में शामिल 3524 महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चे लड़के थे, जबकि 3017 महिलाओं के गर्भ में लड़कियां थी।