झारखंड के स्वतंत्रत पत्रकार रूपेश को रामगढ़ स्थित घर से सुबह पुलिस ने गिरफ्तार किया
सुबह जब खरसावा सराय केला के कांड्रा थाने की पुलिस टीम सर्च वारंट लेकर आई थी, तो उनके पास गिरफ्तारी वारंट भी था लेकिन भीड़ जुटने के डर से पुलिस ने गिरफ्तारी वारंट नहीं दिखाया और गिरफ्तारी वारंट पर मुकदमा संख्या 61/21 दर्ज है, यह 8 महीने पुराना कोई मुकदमा है। जिसके बारे उनमें से किसी को कुछ पता नहीं था।
दरअसल रूपेश लंबे समय से राज्य मशीनरियों के निशाने पर हैं क्योंकि रूपेश जल-जंगल-जमीन के लूट -खसोट व आदिवासियों पर हो रहे बर्बर शोषण ,दमन और अत्याचार खिलाफ लगातार लिखते – बोलते रहे हैं और पेगासस जासूसी मामले में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन द्वारा मज़दूर मोतीलाल बास्के की हत्या के खिलाफ लगातार लिख रहे थे
एक जनपक्षधर, ईमानदार और बेबाक पत्रकार होने के कारण ही रूपेश को माओवादी बताकर 2019 में गिरफ्तार किया गया था क्योंकि रूपेश डोली मज़दूर मोतीलाल बास्के (जिनकी हत्या सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन द्वारा कर दी गयी थी जब वो जंगल से लकड़ी लेकर अपने घर की ओर जा रहे थे) की हत्या के खिलाफ लगातार लिख रहे थे और मुखर होकर बोल रहे थे ऐसे में रूपेश को एक फ़र्ज़ी मुकदमे में फंसाकर जेल भेज गया परन्तु कोई सबूत न मिलने के कारण 6 महीने बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
आज के दौर में जब कॉरपोरेट हाउसेस मीडिया सत्ता के लिए राग दरबारी का काम कर रही है ऐसे समय में जनवाद पसंद लोगों और रूपेश जैसे पीपुल्स एक्टिविस्ट और जनपक्षधर पत्रकार जो कि जनता के शोषण दमन के खिलाफ मुखर होकर बोल रहे हैं और लिख रहे हैं जाहिर तौर पर ये लोग राज्यसत्ता के आँख की किरकिरी बने हुए हैं, इसलिए सत्ता के निजाम के इशारे पर राज्य मशीनरियों द्वारा उनके मोबाईल, लैपटॉप में पेगासस वायरस डालकर और फ़र्ज़ी मुकदमें में फंसाकर उन्हें सालों से जेल में रखा गया है और वो सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है।
झारखंड सरकार जल-जंगल -जमीन की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों पर फ़र्ज़ी मुकदमें लदवाकर उन्हें जेलों में भर रही
झारखंड सरकार जल-जंगल -जमीन की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों पर फ़र्ज़ी मुकदमें लदवाकर उन्हें जेलों में भर रही झारखण्ड सरकार खुद को आदिवासीयों की हितैषी बताती है लेकिन 2 दिसम्बर 2019 को गठन के बाद से हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने डालमिया सीमेंटस, टाटा स्टील और कुछ अन्य फर्मों के साथ हज़ारों करोड़ के समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
अगले कुछ वर्षों में राज्य में खनन को बढ़ाने और जंगल काटने और जमीन लूटने की खुली छूट दे दी गई। झारखंड सरकार जल-जंगल-जमीन की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों पर फ़र्ज़ी मुकदमें लदवाकर उन्हें जेलों में भर रही है और झारखंड के आदिवासी इलाकों में पुलिस द्वारा की जा रही भयानक बर्बरता पर चुप्पी साधे रहती है।