अशोक स्तम्भ या चोल वंश का सेंगोल
भारत का राजचिह्न, अशोक के सिंह-स्तंभ की अनुकृति है। जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। भारत सरकार ने यह चिह्न 26 जनवरी 1950 को अपनाया। इसी अशोक स्तंभ को भारत का राजकीय प्रतीक माना गया है जो आपको प्रशासनिक सेवा में, न्यायालय में, देश के सभी राष्ट्रीय भवनों में देखने को मिलता है।
किस पुरातत्ववेत्ता ने किस स्थान से खोजा है?
भारत का राष्ट्रीय चिह्न तो सारनाथ के असोक स्तंभ से लिया गया है, उसकी काॅपी है, लेकिन ये सेंगोल रूपी राजदंड कहाँ से लिया गया है, कहाँ से काॅपी की गई है? ऐसा सेंगोल रूपी राजदंड कहाँ की खुदाई में मिला है? भारत का कौन-सा राजवंश ठीक ऐसा राजदंड का प्रयोग करता था? यदि कोई प्राचीन या मध्यकालीन राजवंश ठीक ऐसा सेंगोल का प्रयोग सत्ता-हस्तांतरण के लिए करता था तो उसकी मूल काॅपी कहाँ है?
फ्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल ने भारत के राष्ट्रीय चिह्न को 1905 ई. में खोजा था, लेकिन सेंगोल की मूल काॅपी को किसने और कब खोजा था? भारत के किस म्यूजियम में वो ऑरिजनल सिंगोल रखा है, जिसकी काॅपी कर आधुनिक भारत में इसे बनाया गया है।
यह क्या संदेश देना चाहते है?
भारत सरकार के द्वारा बनाए जाने वाला हर कानून, जारी किया जाने वाला हर अध्यादेश, नियम व जानकारी तथा भारत के राजकीय कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले महत्वपूर्ण चिन्ह के तौर पर भारत के राष्ट्रीय चिन्ह ‘अशोक स्तंभ’ का इस्तेमाल किया जाता है। फिर ‘सेंगोल’ का विचार कहाँ से और क्यों लाया जा रहा है! कितने राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह होंगे? क्या सरकार को प्रतीक चिन्हों का मेला लगाना है? या जातीय राजवंश के हिसाब से सरकार फिर से देश का बंटवारा कराना चाहती है?
जिसका डर था वही होता दिखाई दे रहा है
गणतंत्र का प्रतीक चिन्ह असोक की लाट यानि सिंहों और निरंतर गतिमान चक्र के साथ अन्य बलशाली प्रतीकों का चारों दिशाओं में हमारी ताकत का स्वतंत्र शोर है। दूसरी ओर, राजतंत्र का प्रतीक चिन्ह ‘सेंगोल’ यानि घुटनों पर शांत बैठा वृषभ (बैल) है। इनकी क्या सोच है शासन सत्ता चलाने की, वह भविष्य की नीति खुलकर सामने आ रही है। गणतंत्र/जनतंत्र यानि लोकतंत्र को खत्म कर क्या राजतंत्र की तरफ लौट रहे हैं?
राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक स्तंभ का अपमान है ये
गृहमंत्री अमित शाह ने ट्विटर और फेसबुक पर स्पष्ट लिख दिया है कि- ”सेंगोल (Sengol) अमृतकाल का राष्ट्रीय प्रतीक होगा।” अर्थात वर्तमान राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह ‘अशोक स्तंभ’ को बदलने की तैयारी हो रही है। किसी देश में एक राष्ट्रीय प्रतीक होता है। जो मन में आए वो करेंगे आप, ये जनता सक्रिय होकर अपनी विरासत को बचाएं।
सम्राट अशोक को विलेन बनाने वाले नाटककार दया प्रकाश सिन्हा को तो हाल ही में पदमश्री भी दे दिया गया है
सामाजिक न्याय और बराबरी का संदेश देने वाले इस चिन्ह को अपनाने का विरोध तब हिंदू महासभा द्वारा किया गया था। सम्राट अशोक को विलेन बनाने वाले नाटककार दया प्रकाश सिन्हा को तो हाल ही में पदमश्री भी दे दिया गया है। यह सर्वविदित है कि भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी समेत उसके तमाम मुखपत्रों के माध्यम से भाजपा हमारे पूर्वज का विरोध करती रहीं हैं।
अशोक स्तम्भ को राजकीय चिन्ह से निरर्थक करने की वैसे ही चाल चल दी गई है जैसे ईडब्ल्यूएस लाकर आरक्षण को स्थानांतरित किया जा रहा है
किंतु मोदी सरकार द्वारा अब अशोक स्तम्भ को इसे राजकीय चिन्ह के रुप में वैसे ही निरर्थक साबित करने की चाल चल दी गई है जैसे ईडब्ल्यूएस लाकर आरक्षण को खत्म कर दिया गया है। अब “सेंगोल” जो चोल वंश का चिन्ह है, उसे राजदंड के रुप में अपनाया गया है। पिछ्ले संसद भवन में अशोक स्तम्भ संसद भवन में अध्यक्ष के आसन के पीछे दिखाई देता था। अब वहां स्पीकर के पास अशोक स्तंभ की जगह सेंगोल दिखेगा।
“सेंगोल” को राजदंड के रुप में अपनाने का मतलब यह है थोड़े ही दिनों में तमाम आधिकारिक पत्रों से अशोक स्तम्भ हट सकता है
अशोक स्तम्भ को नए भवन के छत के गुंबज पर पहुंचा दिया गया है। “सेंगोल” को राजदंड के रुप में अपनाने का मतलब यह है थोड़े ही दिनों में तमाम आधिकारिक पत्रों से अशोक स्तम्भ हट सकता हैं। यह नया भारत है, अखंड भारत के निर्माता सम्राट अशोक से नफरत, बिहार से नफरत की इंतिहा हो गई है। बिहार इसकी कीमत चुका रहा है।
यह क्या तानाशाही रस्ते पर बढ़ता क़दम है
संसद भवन का उद्घाटन मैं ही करूं। क्रिकेट स्टेडियम मेरे ही नाम पर हो। टीवी-अखबार की सुर्खियों में मैं ही छाया रहूं। वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर मेरा ही चेहरा चमके। इतिहास गवाहहै की यह देश ‘मैं’ से नहीं, ‘हम’ से चलता है। नए संसद भवन का उद्घाटन सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठीं महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा किया जाना चाहिए, लेकिन ‘प्रचारजीवी’ ने सियासी स्वार्थ और आत्ममुग्धता में सभी संसदीय परंपराओं को भुला दिया।
जनता आपको आपकी जगह दिखा देगी
नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को पूरी तरह से दरकिनार करना न केवल महामहिम का अपमान है बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला भी है। जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता। हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं।
देशभर का SC और ST समाज पूछ रहा है कि क्या हमें अशुभ माना जाता है, इसलिए नहीं बुलाते ?
श्रीराममंदिर के शिलान्यास पर मोदी जी ने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को नहीं बुलाया। नये संसद भवन के शिलान्यास पर भी मोदी जी ने रामनाथ कोविंद जी को नहीं बुलाया। अब नये संसद् भवन के उद्घाटन को भी मौजूदा राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के हाथों से नहीं करवा रहे। देशभर का SC और ST समाज पूछ रहा है कि क्या हमें अशुभ माना जाता है, इसलिए नहीं बुलाते ?
अब ‘विस्टा हाउस’ का नाम बाबा साहेब ‘डॉ बीआर अंबेडकर’ के नाम पर रखने की मांग शुरू हो गई है
मोदी सरकार द्वारा दिल्ली में बनाए जा रहे केंद्रीय विस्टा हाउस में लगाए गए अशोक स्तंभ पर विवादअभी बंद भी नहीं हुआ, तबतक अब देश के दलितों ने विस्टा हाउस का नाम बाबा साहेब डॉ बीआर अंबेडकर के नाम पर रखने की मांग शुरू हो गई है। मामले को लेकर दिल्ली के एक्टीविस्ट डॉ ओमसुधा ने कहा कि बाबा साहेब ने देश का संविधान बनाया था।