‘‘अंडमान द्वीप भारतीयों का प्रथम प्रदेश है जो ब्रिटिश शासन से मुक्त होकर हमारे हाथ आया है। ये हमारे स्वाधाीनता संग्राम का शुभ लक्षण है। इस अवसर पर उन राष्ट्र-प्रेमियों की स्मृति में जिन्होंने देश पर अपना बलिदान किया है, अंडमान का नाम ‘शहीद द्वीप’ तथा निकोबार का नाम ‘स्वराज्य द्वीप’ रखा जाता है।’’ सुभाषचंद्र बोस
‘‘मिट्टी, पत्थर, नदी, जंगलों और पहाड़ों से देश नहीं बनता। देश बनता है वीरों के शौर्य से, वीरांगनाओं के सतीत्व से और शहीदों के रक्त से।’’ सुभाषचंद्र बोस
विदेशी धरती से भारत की आजादी के लिए महासंग्राम छेड़नेवाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में 74 साल बाद भी रहस्य बरकरार है। उनके बारे में अनेक किस्से कहानियां हैं, लेकिन सच कभी सामने नहीं आया। 18 अगस्त, 1945 को ताइवान के जिस विमान हादसे में नेताजी की मौत हो जाने की बात कही जाती है, ताइवान सरकार के अनुसार उस दिन कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था।
जान-बूझ कर छुपाया गया सच ?
नेताजी के रहस्य पर पुस्तक लिख चुके अनुज धर का मानना है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान के ऊपर विमान हादसे और मौत की कहानी यकीन के परे है। उनका कहना है कि नेताजी की मौत का सच जान-बूझ कर छिपाया जा रहा है।
विरोधाभासी बयान से रहस्य और भी गहरा गया
ताइवान में कथित विमान हादसे के समय नेताजी के साथ रहे कर्नल हबीबुर रहमान ने इस बारे में आजाद हिंद सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के समक्ष जो विरोधाभासी बयान दिये, उनसे यह रहस्य और भी गहरा गया।
जब आंख खुली तो वह ताइपेई के एक अस्पताल में थे
आरटीआइ का इस्तेमाल – रहमान ने कभी कहा कि उन्होंने ही नेताजी के जलते हुए कपड़े उतारे थे, तो कभी कहा कि वे विमान हादसे में खुद बेहोश हो गये थे और जब आंख खुली तो वह ताइपेई के एक अस्पताल में थे। कभी उन्होंने कहा कि नेताजी का अंतिम संस्कार 20 अगस्त 1945 को हुआ, तो कभी अंतिम संस्कार की तारीख 22 अगस्त बतायी।
मिशन नेताजी से जुड़े अनुज धर ने कहा कि जब उन्होंने इस बारे में सूचना के अधिकार के तहत सरकार से सच जानना चाहा, तो सरकार ने सूचना उपलब्ध कराने से मना कर दिया। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकार जान-बूझ कर नेताजी के बारे में सच छुपा रही है।
नेताजी के संबंध में रूस से पत्र-व्यवहार हुआ था – विदेश मंत्रलय ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमय मृत्यु के संबंध में पूर्व सोवियत संघ और वर्तमान रूस सरकार से पत्र व्यवहार की बात स्वीकार की है लेकिन इसके बारे में और जानकारी देने से इंकार कर दिया। यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत ‘अनुसंधान समूह मिशन नेताजी’ को दी गई।
मास्को से पत्र व्यवहार की प्रतियों को क्यों नहीं दिखाया गया
इस समूह ने मंत्रालय से नेताजी के संबंध में पूर्व सोवियत और वर्तमान रूस सरकार से हुए पत्र व्यवहार की सत्यापित प्रतियों की मांग की थी। समूह के अनुसार मंत्रलय के केन्द्रीय जनसूचना अधिकारी ई बरवा ने उससे कहा कि मास्को से पत्र व्यवहार की प्रतियों को सूचना के अधिकार के तहत नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि इससे दूसरे देश के साथ रिश्ते भी जुड़े हुए हैं।
बरवा ने मिशन का अनुरोध ठुकराते हुए उसे लिखा था कि संबंधित जानकारी को धारा 8-1। और थ् के तहत सार्वजनिक किये जाने की अनिवार्यता से छूट प्राप्त है। यह धारा अन्य देशों की सरकारों से प्राप्त गुप्त सूचनाओं और भारत के सुरक्षा सामरिक हितों के प्रभावित होने से संबंधित है।
ज्ञातव्य है कि देश की आजादी के महानायक नेताजी 18 अगस्त 1945 को ताइवान की राजधानी ताइपे में कथित विमान दुर्घटना के बाद लापता हो गए थे। बाद में ताइवान के अधिकारियों ने कहा कि इस तरह की कोई दुर्घटना हुई ही नहीं थी।
राजनीति की हद
आजाद हिंद में शामिल रहे बहुत से सैनिक और अधिकारी दावा कर चुके हैं कि विमान हादसे में नेताजी की मौत नहीं हुई थी। वे आजादी के बाद भी जीवित रहे, लेकिन घटिया राजनीति के चलते सामने नहीं आ पाये। नेताजी की कथित मौत की जांच के लिये बनायी गई शाहनवाज समिति ने जहां विमान हादसे की बात को सच बताया था।
फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे ?
वहीं, समिति में शामिल नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और कहा था कि विमान हादसे की घटना को जान-बूझ कर सच बनाने की कोशिश की जा रही है। आजाद हिंद फौज के कई सेनानियों का दावा है कि फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। उन्होंने इस रूप में नेताजी से गुप्त मुलाकातों का दावा भी किया है।
1999 में गठित मुखर्जी आयोग ने 18 अगस्त, 1945 में विमान हादसे में नेताजी की मौत को खारिज कर दिया तथा कहा कि मामले में आगे और जांच की जरूरत है। आयोग ने 8 नवंबर 2005 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी थी।
17 मई, 2006 को इसे संसद में पेश किया गया, जिसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया। शहीद वीरों ने आजादी की जिस अमानत को हमें सौंपा है, 18 अगस्त जैसा दिन उसी को याद दिलाने और संकल्प को दृढ़ कराने हर साल आता है।
हम अगर समग्र भाव से इसे अपना लें तो हम अकिंचन भारतवासियों का उन शहीदों के प्रति यहीं सच्ची श्रद्धांजलि होगी और आजादी का सूर्य कभी उदास न होगा और अरुणोदय की लालिमा सफल लोकतंत्र बनकर सिन्दूर की तरह भारत मां की मांग में सदा सुशोभित रहेगी।
मां के शहीद सपूतों से हम सम्पूर्ण राष्ट्र की ओर से अपने इस अक्षम्य अपराध के लिए क्षमा प्रार्थी हैं। जिस आजादी के बीज को उन सबों ने सींचा था, उसके वृक्ष पर फल-फूल उनकी दुआ के बिना नहीं आयेंगे। क्योंकि उनकी मजारों से आज भी खामोश आवाज हवा के लहरों पर तैरती है-
मुझे यकीं है कि मेरा खूं रंग लायेगा, मगर मैं वक्त नहीं हूँ कि फ़ेसला लिखूं।
M. K. SINGH