नूपुर शर्मा के समर्थन में फेसबुक पर पोस्ट करने पर कन्हैया लाल तेली ने अपनी जान गंवाई। धमकी मिलने के बावजूद भी कन्हैया लाल तेली को सुरक्षा उपलब्ध क्यूँ नहीं करायी गयी? डर के मारे उसने 6 दिन दुकान नहीं खोली थी। लगातार धमकी मिल रही थी, नामजद रिपोर्ट करवाई थी। फिर उसकी हिफाज़त का बंदोवस्त क्यों नहीं किया गया ?
राजनीतिक फायदा के लिए छोटे स्तर की नेता नूपुर शर्मा को हाईलाइट बनाए रखा गया
जिस तरह त्वरित कार्यवाही कर उसे भाजपा से निलंबित किया गया था, यदि उसी दिन जेल भेज दिया जाता तो इतनी हाय तौबा न मचती। न देशभर में कोई प्रदर्शन होते औऱ न कोई आई सपोर्ट विथ अलाना-फलाना का trend चलता। मृतक बेचारा दिन भर टीवी चैनल देखने वाला औऱ व्हाट्सप्प पढ़ने वाला एक आम नागरिक था, जोश औऱ बहकावे में आकर ‘आई सपोर्ट विथ नूपुर शर्मा’ कर गया औऱ धर्म की अफीम चाटे हुए लोगों का शिकार हो गया।
कौन हैं मास्टरमाइंड औऱ असल दोषी?
जिन लड़कों ने यह घिनौना काम किया हैं उनके कुकर्मो की सजा उनके नजदीकी परिजन घर परिवार वाले झेलेंगे ही, लेकिन सबसे बड़ा खतरा यह हैं कि इस घटना की वजह से पूरे देश में एक अजीबोगरीब भय औऱ अविश्वास का माहौल पैदा हो सकता हैं, इस भरोसे को जिंदा रखना बहुत मुश्किल काम होगा।
किसी भी क्राइम के पीछे मास्टरमाइंड कौन हैं, यह मालूम करने का एक ही तरीका है, इस घटना से फायदा किसको होने जा रहा हैं ? जो लाभार्थी होगा वहीं क्राइम का मास्टरमाइंड या हिस्सेदार या राजदार होगा! उदयपुर की घटना से जिन्हें सबसे ज्यादा फायदा पहुंचता दिखे समझ लीजिए वहीं लोग मास्टरमाइंड हैं।
राजस्थान पुलिस ने तुरंत कार्यवाही करके कन्हैया तेली के हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया था व शुरुआती जांच में राज्य के बाहर के लिंक पाए गए थे तो जाँच एनआईए द्वारा करने पर सहयोग का भरोसा दिलाया। पूरे राज्य में शांति बनाए रखने के लिये धारा 144 लगाई गई थी लेकिन पूरे दिन इंसाफ की मांग के बजाय दंगा करने की कोशिश करने वाले लोग सड़कों पर जुलूस-रैलियां निकाल रहे थे!
राजस्थान पुलिस की इस घटना को लेकर त्वरित कार्यवाही देखते हुए जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है लेकिन धारा 144 पूरे राज्य में लगने के बावजूद हजारों की भीड़ सड़को पर उतरकर हुड़दंग कर रही थी उन पर कार्यवाही किस दबाव में नहीं की गई वो समझने का विषय है।
दंगों में धर्मों के एंगल से हम मृतकों को देखते हैं लेकिन पुलिस के दर्द को कोई नहीं समझता
कन्हैया तेली की छुर्रे से दर्दनाक हत्या का बदला क्या पुलिस कांस्टेबल संदीप पर तलवार से हमला करके लिया जाएगा? दंगों में धर्मों के एंगल से हम लोग मृतकों को देखकर जज्बाती हो जाते है लेकिन इस समयकाल में सबसे बड़े संकट में पुलिस के लोग होते है। उनके दर्द को कोई नहीं समझता।
मुद्दा धर्म का हो तो भीड़ को इंसाफ से कोई मतलब नहीं होता। धार्मिक उन्मादी भीड़ अपने हिसाब से इंसाफ करने लगती है। उनके दिमाग मे सिर्फ और सिर्फ प्रतिहिंसा होती है चाहे सामने कोई हो।
जो लोग कन्हैया तेली की हत्या को लेकर सड़कों पर उतरे, धारा 144 का उल्लंघन किया, नफरती नारे लगाए गए यहां तक कि कन्हैया के अंतिम संस्कार में भी, क्या इन पर कोई कानूनी कार्यवाही होगी?
राजस्थान पुलिस का जांबाज सिपाही तो फसाद रोकने के लिए तैनात था! वो तो नागरिक सुरक्षा की हिफाजत कर रहा था। कौन लोग है तो जो धारा 144 लगने के बावजूद सड़कों पर आतंक का पर्याय बनकर हंगामा कर रहे थे?