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राजद सुप्रीमों को तेजस्वी यादव को खुला छोड़ना पड़ेगा

राजद के जनाधार को बढ़ाने के लिए लालू प्रसाद को अखिलेश यादव की तरह कलेजा बड़ा करना होगा। लालू प्रसाद जब तक अपने लाल तेजस्वी यादव की सुरक्षा के लिए पप्पू यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं का पर कतरते रहेंगे, हीना साहेब जैसे प्रत्याशी को दरकिनार कर अजय निषाद जैसे भाजपा से रिजेक्टेड और अशोक यादव जैसे लोगों को समीकरण से विपरीत टिकट थमाते रहेंगे तो चार सीटों के भी लाले पड़ेंगे।

राजद को एक अति गम्भीर मसले पर कड़ी नजर रखनी होगी। उनके कई स्वजातीय गालीबाजी यूटूबर्स राजद के पक्ष में मतों की गोलबंदी कराने के बजाये नफरत फैलाकर बिखराव लाते हैं। ऐसी एक बड़ी जमात है जो राजद या इंडिया अलायन्स के पक्ष में जाने का मिजाज बनाती है तो वैसे यूटूबर्स के वीडियो या गली-कूचे में बैठे बड़बोले छुटभैये नफरती उन्हें पुनः मुश्को भवः की नसीहत देते हैं। इसे रोकना होगा।

अखिलेश यादव ने यूपी में विभिन्न जातियों के प्रत्याशियों को उतारा और यादवों को टिकट देने में प्रायः कोताही बरती। इसका लाभ उन्हें हुआ। लालू प्रसाद ने समीकरण के उलट नवादा में कुशवाहा प्रत्याशी को उतारा जबकि मूँगेर भी अटपटा चयन था। उन्होने उत्तर बिहार में राहुल गाँधी की सभा भी प्रायः आयोजित नहीं करायी।

जहानाबाद की जीत नीतीश कुमार के गलत फैसले और भूमिहार मतदाताओं के निर्णायक निर्णय का प्रतिफल है

औरंगाबाद में राजद की जीत सुशील सिंह के खिलाफ एन्टी इनकंबेंसी और नमो लहर के खात्मे से हुई। लोग मतदान में शरीक नहीं हुए। जहानाबाद की जीत नीतीश कुमार के गलत फैसले और भूमिहार मतदाताओं के निर्णायक निर्णय का प्रतिफल है जबकि बक्सर की जीत दो मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी के बीच टकराहट से निकली। महज पाटलिपुत्र की जीत मीसा भारती के अथक परिश्रम, राहुल गाँधी की सभा से निकली।

मीसा भारती के भूमिहार बहुल गाँवों के दौरों ने बड़ा फर्क लाया। भूमिहार मतदाताओं का खुन्नस दूर हुआ और उनके प्रति सॉफ्ट कार्नर बना। क्षेत्र में एन्टी इनकंबेंसी व्याप्त था इसलिए उन्हें विकल्प मिला। भाजपा से खार खाये कार्यकर्ताओं ने भी ऐन मौके पर बगावत की बिगुल फूँकी और भारी संख्या में मतदान कर 4500 मतों से बिक्रम से भी लीड कराकर सारे मिथक तोड़ दिये। पालीगंज से 20 हजार मतों से लीड देने के पीछे कई गाँवों के भूमिहार मतदाताओं की भी भूमिका रही। राजद के पक्ष में कुशवाहा नेताओं की बैठक से लवकुश समीकरण ज्यादा कारगर हुआ।

अखिलेश सिंह प्रदेश में काँग्रेस के सुरक्षित सिरमौर और अपने पुत्र के सुरक्षित कैरियर के बीच ही सिमटकर लालू प्रसाद के लिए कार्य करते रहेंगे तो बेतिया, पूर्णियाँ, बेगूसराय और महराजगंज जैसी सीटें लूज करते जायेंगे। उन्होंने अपने पुत्र के लिए अरुण कुमार का पत्ता साफ किया और महराजगंज हार गए। उन्होंने लालू प्रसाद के दबाव में पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को टिकट से बेदखल किया। परिणामस्वरूप पूर्णियाँ उनके खाते में आने से रह गया, बेगूसराय से गिरिराज सिंह की सुनिश्चित हार जीत में बदल गई।

बेतिया में काँग्रेसी प्रत्याशी के पक्ष में सांगठनिक स्तर पर मुहिम में शिथिलता बरती गई, पैसे की कमी खलती रही और एन्टी इनकंबेंसी के बाद भी संजय जायसवाल जीत गए। बेतिया में काँग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में सांगठनिक मुहिम में शिथिलता बरतते रहेंगे तब तक बिहार में राजद चार और काँग्रेस तीन सीटों पर सिमटती रहेगी।

बिहार में अगर कोई एक व्यक्ति दिलेरी से जीता है तो उसका नाम है पप्पू यादव

तेजस्वी यादव एक सीट गठबन्धन की ओर से पप्पू को नहीं दे पाए. क्या फायदा 251 रैलियां करने की 4 सीट पर ही सिमट गये। 26 सीट में से कम से कम 20, सीट आने चाइए था। गठबन्धन की ओर से बड़े नेता के रुप में उभरे थे लेकिन 4 पर सीट पर ही सिमट गया।

जिस तरह चौतरफा उनको घेरने की कोशिश की गई, तेजस्वी ने तो अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना दिया। पहले कांग्रेस से टिकट नहीं देने दी और बाद में तो कैम्प करके बैठ गए. उस चक्रव्यूह से निकलने वाले का नाम है पप्पू यादव।