आरसीपी सिंह को आगे कर श्रवण कुमार की हकमारी हुई थी
आरसीपी बाबू को नीतीश जी ने जिस ओहदे पर बैठाया था वे उसके हकदार नहीं थे। यदि जातीय आधार, विश्वास, कर्मठता, स्वीकार्यता की बात हो तो नीतीश कुमार के बाद बिहार के कुर्मी समाज में कोई स्वीकार्य चेहरा है तो वो श्रवण कुमार का है। लिहाजा हकदार श्रवण कुमार थे।
आरसीपी सिंह, नीतीश समर्थकों को पार्टी से दूर ही करते रहे
पहले बिहार के दूसरे इलाके में भी कुर्मी समाज की वोट समता पार्टी में हो, यह सुनिश्चित कराने के लिए श्रवण कुमार ही जाते थे और लोग उनकी बात मानते भी थे या आज भी वे सर्वसुलभ हैं। आरसीपी कभी भी सर्वसुलभ नहीं रहे हैं न ही वो संकटमोचक रहे हैं। अपने स्वभाव से वो नीतीश समर्थकों को पार्टी से दूर ही करते रहे थे जबकि वे सत्ता के केंद्र में थे।
श्रवण कुमार को उतना सशक्त कभी नहीं किया गया, इसके बावजूद भी उनके पास गए लोगों का काम हो या नहीं हो किंतु वो किसी को खिन्न नहीं करते हैं। नेता का गुण यहीं है कि जनता और कार्यकर्ता को अपनापन का एहसास करा दें। कोई सारा दुख हर लेगा इसकी कल्पना नहीं किया जा सकता है।
सत्ता के अहंकार में दर्जनों कार्यकर्ता को आरसीपी बाबू दुर्दुरा दिए होंगे, जबकि आज भी श्रवण कुमार में ऐसा राजनेता हैं जिसमें ज्यादा संवेदना है। जो आईएएस, आईपीएस से ज्यादा दयावान है। नेता और नौकरशाह में फर्क रहने दीजिए।
जब आपको जरूरत था तब आरसीपी बाबू आपके काम नहीं आए थे, अब उनको आपकी जरूरत है.. आप स्वाभिमान जगा कर पूछिए कि आपको क्या करना चाहिए। निर्दयी, अहंकारी लोगों से दूर रहिए।